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और कमाल की बात है कि तुम कभी भी पुरोहित की ओर नहीं देखते, वह स्वयं भयभीत है। तुम दर्शनशास्त्री की ओर कभी नहीं देखते, वह खुद डरा हुआ है।
मैंने सुना है, एक नया धर्माधिकारी अत्यधिक श्रम कर रहा था, और परीक्षणों से पता लगा कि उसके फेंफडे बुरी तरह प्रभावित हो गए हैं। चिकित्सक ने कहा कि लंबे समय तक आराम करना नितांत आवश्यक है। धर्माधिकारी ने विरोध करते हुए कहा कि उसके लिए अपना कार्य छोड़ पाना संभव नही हो सकेगा।
ठीक है, डाक्टर बोला, आपके पास चुनाव है-स्वर्ग या स्विटजरलैंड?
धर्माधिकारी थोड़ी देर कमरे में टहलता रहा और तब उसने कहा : आप जीत गए स्विटजरलैंड ही ठीक
जब जीवन और मृत्यु का प्रश्न हो तो, पुरोहित, दर्शनशास्त्री, वे लोग भी जिनके पास तुम पूछने जाते हो-वे भी जी नहीं पाए हैं। अधिक संभावना तो इस बात की है कि उन्होंने तो उतना भी नहीं जीया, जितना तुम जीए हो; वरना वे पुरोहित नहीं हो सकते थे। पुरोहित बनने के लिए उन्होंने अपने जीवन को पूर्णत : इनकार कर दिया। साधु, संन्यासी, महात्मा हो जाने के लिए उन्होंने अपने अस्तित्व को पूरी तरह नकार दिया है, और समाज जो कुछ भी उनसे चाहता है उसे उन्होंने मान लिया है। वे इससे संपूर्णत: राजी हो गए हैं। वे अपने आप से, अपनी स्वयं की जीवन ऊर्जा से राजी न हए, और वे नकली, मूढ़तापूर्ण बातों- प्रशंसा, सम्मान से राजी हो गए।
और तुम जाते हो और पूछते हो उनसे। वे स्वयं ही कांप रहे हैं। कहीं गहरे में वे स्वयं ही भयभीत हैं। वे और उनके शिष्य, सभी एक ही नाव में सवार हैं।
मैंने सुना है, वेटिकन में पोप बहुत ज्यादा बीमार पड़ गए, और एक संदेश जारी हुआ कि सेंट पीटर्स की बॉलकनी से कार्डिनल एक विशेष उदघोषणा करेंगे।
जब वह दिन आया, तो प्रख्यात चौक निष्ठावानों से खचाखच भर गया। वयोवृद्ध कार्डिनल ने कांपती हुई आवाज में कहा : 'पवित्र आत्मा (पोप) को केवल हृदय प्रत्यारोपण द्वारा ही बचाया जा सकता है, और आज यहां एकत्रित हुए सभी भले कैथेलिकों से मैं दान के लिए निवेदन करता हूं।'
उसने हाथ में पंख थामे हुए आगे कहा : 'मैं यह पंख आपके बीच गिरा दूंगा, और जिस पर भी यह गिरता है, उस व्यक्ति को पवित्र परमात्मा के द्वारा पवित्र पिता का जीवन बचाने के लिए चुन लिया
गया।
जब उसने वह पंख गिराया......और चारों तरफ जो भी सुना जा सकता था, वह था बीस हजार श्रद्धालु रोमन कैथेलिकों का धीमे-धीमे फंक मारना।