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धीरे-धीरे बच्चा तुम्हारा अनुगमन करने को बाध्य हो जाता है, क्योंकि वह असहाय है, वह तुम पर आश्रित है, उसका जीवित रहना तुम पर निर्भर है। जीवित रहने की खातिर वह मृत होने को राजी हो जाता है। बस जीवित रहने की खातिर; क्योंकि तुम उसे दूध और भोजन देते हो, और उसकी देखभाल करते हो। यदि तुम उसके इतने अधिक विरोध में हो तो वह कहां जाएगा? धीरे- धीरे वह अपना अस्तित्व तुम्हें बेचता जाता है। जो कुछ भी तुम कहते हो, धीरे- धीरे वह मान लेता है। तुम्हारे पुरस्कार और तुम्हारे दंड ही वे उपाय हैं जिनके द्वारा तुम उसे दिग्भ्रमित करते हो।
धीरे-धीरे वह अपने अंतस की आवाज से अधिक तुम पर विश्वास करने लगता है, क्योंकि वह जानता है कि उसके भीतर की आवाज हमेशा उसे झंझट में डालती है। उसके भीतर की आवाज सदा उसके लिए दंड दिलवाने वाली सिद्ध हुई है। इसलिए सजा और उसके भीतर की आवाज संयुक्त हो जाते हैं। और जब कभी भी वह अपनी आंतरिक आवाज नहीं सुनता और तुम्हारा अंधानुकरण करता है, उसे पुरस्कृत किया जाता है। जब कभी भी वह स्वयं होता है. उसे दंडित किया जाता है; जब कभी भी वह स्वयं नहीं होता उसे पुरस्कृत किया जाता है। यह तर्क स्पष्ट है।
धीरे-धीरे तुम उसे उसकी अपनी जिंदगी से भटका देते हो-। धीरे-धीरे वह भूल जाता है कि उसकी आंतरिक आवाज क्या है। अगर लंबे समय तक तुम इसे न सुनो तो फिर तुम इसे नहीं सुन सकते।
किसी भी क्षण अपनी आंखें बंद कर लो-तुम्हें अपने पिता, अपनी माता, अपने साथियों, अध्यापकों की आवाजें सुनाई पड़ेगी, और तुम कभी अपनी आवाज नहीं सुनोगे। अनेक लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, आप भीतर की आवाज के बारे में कहते हैं; हम इसे कभी नहीं सुनते, वहां तो भीड़ लगी है। जब जीसस कहते हैं, अपने पिता और माता से घृणा करो, वे वास्तव में तुम्हारे माता-पिता से घृणा करने को नहीं कह रहे हैं, वे कह रहे हैं, उन पिता और उन माता से घृणा करो जो तुम्हारे भीतर अंतश्चेतना बन गए हैं। घृणा करो, क्योंकि यह एक सर्वाधिक कुरूप समझौता है-आत्मघाती अनुबंधन, जो तुमने किया है। घृणा करो, इन आवाजों को मिटा डालो, ताकि तुम्हारी आवाज मुक्त और स्वतंत्र की जा सके; जिससे कि तुम अनुभव कर सको कि तुम कौन हो और तुम क्या होना चाहते हो।
आरंभ में निःसंदेह तुम पूर्णत: खोया हुआ अनुभव करोगे। यही तो ध्यान में घटता है। अनेक लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं, हम तो रास्ता खोजने आए थे, इसके विपरीत ध्यान प्रयोगों से यह –भी पूर्णत: खोया हुआ लग रहा है 1 इससे शात होता है कि दूसरों की पकड़ ढीली पड़ रही है, इसलिए तुम अपने को खोया हुआ महसूस करते हो, क्योंकि दूसरों की वे आवाजें तुम्हें निर्देश दे रही थीं, और तुमने उनमें विश्वास करना शुरू कर दिया था। तुमने उनमें इतने लंबे समय से विश्वास किया है वे तुम्हारे दिशा-निर्देशक बन चुके थे। अब, जब तुम ध्यान करते हो तो ये आवाजें मिट जाती हैं। तुम जाल से मुक्त हो गए हो। दुबारा तुम बच्चे बन जाते हो, और तुम नहीं जानते कि कहां जाना है। क्योंकि सारे मार्गदर्शक खो गए हैं। पिता की आवाज वहां नहीं है, मां की आवाज वहां नहीं है, अध्यापक वहां नहीं