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'उनकी बोध की शक्ति
पर संयम साधने से...।'
किंतु उन्हें शक्तिशाली होना पड़ेगा। वरना तुम यह भी अनुभव न कर पाओगे कि शक्ति क्या है। ये ज्ञानेंद्रिया शक्ति से इतनी आपूरित होनी चाहिए, उन्हें शक्ति की उस ऊंचाई पर होना चाहिए, कि तुम उन पर संयम साध सको, तुम उन पर ध्यान कर सको।
अभी तो जब तुम एक फूल को देखते हो, तो फूल वहां है, लेकिन क्या तुमने अपनी आंखों को महसूस किया है? तुम फूल को देखते हो, लेकिन क्या तुमने अपनी आंखों की शक्ति को अनुभव किया है? इसे वहां होना चाहिए क्योंकि तम फल को देखने के लिए अपनी आंखों का उपयोग कर रहे हो। और निस्संदेह आंखें किसी भी फूल से ज्यादा सुंदर हैं क्योंकि सभी फूलों का शान तुम्हें आंखों के माध्यम से होता है। आंखों के द्वारा ही तुम्हें फूलों के संसार की जानकारी हो पाई है, किंतु क्या तुमने कभी आंखों की शक्ति को अनुभव किया है। वे संवेदना से लगभग शून्य, मृतप्राय: हैं। वे निष्क्रिय, बस झरोखे जैसी, ग्रहणशील हो गई हैं। वे अपनी विषय वस्तु तक नहीं पहुंचती। और शक्ति का अर्थ है सक्रिय होना। शक्ति का अभिप्राय है कि तुम्हारी आंखें गतिशील होकर फूलों को करीब-करीब छू ही लें, तुम्हारे कान गतिशील होकर पक्षियों के गीतों को करीब-करीब स्पर्श ही कर लें, तुम्हारे हाथ तुम्हारे भीतर की सारीऊर्जा के साथ जो उनमें केंद्रित हो गई हो गतिमान हो और तुम्हारे प्रिय को स्पर्श करें। या तुम घास पर लेटे हो, तुम्हारा सारा शरीर शक्ति से आपूरित, घास से संपर्क बना रहा है, घास से संवाद कर रहा है। या तुम नदी में तैर रहे हो, नदी की गुनगुनाहट सुन रहे हो और उसके साथ धीमे स्वरों में संवाद कर रहे हो-संपर्क में हो, संवाद कर रहे हो, लेकिन शक्ति की जरूरत है।
इसलिए पहली बात जो मैं चाहता हूं कि तुम करो वह यह कि जब तुम देखो, तो वास्तव में देखो, आख ही बन जाओ, बाकी सब कुछ भूल जाओ। अपनी संपूर्ण ऊर्जा को आंखों से होकर प्रवाहित होने दो, और तब तम्हारी आंखें एक आंतरिक फहार से स्नान करके स्वच्छ हो जाएंगी और तम यह देखने में समर्थ हो जाओगे कि अब वृक्ष वैसे ही न रहे, उनकी हरीतिमा अब पहले जैसी नहीं है, यह और हरी हो गई है, जैसे कि इससे धूल हट गई हो। धूल वृक्षों पर नहीं थी, यह तुम्हारी आंखों पर थी। और तब तुम पहली बार देखोगे, और तुम पहली बार सुनोगे। जीसस अपने शिष्यों से कहे चले जाते हैं, अगर तुम्हारे पास कान हैं, सुनो। अगर तुम्हारे पास आंखें हैं, देखो। वे एकदम अंधे नहीं थे, और वे एकदम बहरे भी नहीं थे। उनका क्या अभिप्राय है? उनका अर्थ यह है कि तुम लगभग बहरे हो गए हो, लगभग अंधे हो गए हो। तुम देखते हो फिर भी तुम नहीं देखते। तुम सुनते हो फिर भी तुम नहीं सुनते। यह शक्ति नहीं है, यह ऊर्जा नहीं है, यह जीवंतता नहीं
'उनकी बोध की शक्ति, वास्तविक स्वरूप पर संयम साधने से...।'