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के पीछे तुम्हें ऊर्जा का विशाल संचय मिलता है, यह कान की तन्मात्रा है। अपने यौनांगों के पीछे तुम्हें बहुत सारी संचित ऊर्जा मिलती है, यह कामवासना की तन्मात्रा है। और इसी भांति और जगहों पर है। हर कहीं पर, क्योंकि तुम्हारी ज्ञानेंद्रियों के पीछे ऊर्जा का अप्रयुक्त कुंड है। एक बार तुम इसे जान लो तुम इस ऊर्जा को अपनी आंखों में प्रवाहित कर सकते हो, और तब तुम्हें वे दृश्य दिखाई पड़ेंगे जो कभी-कभी कवि देखते है, चित्रकार देखते हैं। तब तुम्हें ऐसी ध्वनियां सुनाई पड़ेगी जिन्हें कभी-कभी कवि सुनते हैं, संगीतकार सुनते हैं। और तब उन चीजों को छिपाओगे जिन्हें कभी-कभी दुर्लभ क्षणों में सिर्फ प्रेमी ही जानते हैं:, किस भांति छूना है।
तुम जीवंत, प्रवाहमान हो उठोगे।
सामान्यत: तो तुम्हें यही सिखाया जाता है कि अपनी ज्ञानेंद्रियों को दमित किस प्रकार करो, न कि उन्हें जानो। यह बहुत मूढ़तापूर्ण है, लेकिन बहुत सुविधाजनक है।
ऐसा हुआ, एक गांव में विवाह के बाद दूल्हा और दुल्हन घोड़ागाड़ी में बैठ कर अपने फार्म हाउस की
और चल दिए। सड़क पर लगभग एक मील चलने के बाद घोड़ा लड़खड़ा गया-यह हुआ : एक! दूल्हा चिल्लाया।
वे चलते गए, और घोड़ा फिर लड़खडाया-यह हुआ. दो! दूल्हा चिल्ला कर बोला।
जैसे ही वे फार्म हाउस के निकट पहुंचे, घोड़ा फिर से लड़खड़ा गया-यह हुआ. तीन। दूल्हा चिल्लाया और सीट के पीछे से बंदूक उठा कर उसने गोली घोड़े के सिर के पार कर दी।
दुल्हन तो भौचक्की सी बैठी रही। फिर उसने बड़े निश्चित ढंग से अपने नये वर को बताया कि उसके इस कृत्य के बारे में उसने क्या सोचा? वह उस समय तक चुप बैठा रहा, जब तक कि वह शात न हो गई फिर उसने उसकी और संकेत किया और चिल्लाया, यह हुआ : एक!
यह दंपति अगले साठ वर्षों तक सुखपूर्वक जीए।
किंतु यह प्रसन्नता वास्तविक प्रसन्नता नहीं हो सकती। बंदूक की नोक से दमन करना आसान है, लेकिन तब इन दो लोगों के बीच किस प्रकार का प्रेम घटा होगा? सदैव ही बंदूक दोनों के बीच में खड़ी रही होगी और पत्नी सदा भयभीत रही होगी कि अब किसी भी क्षण वह कहने जा रहा है-अब यह हुआ. दो! अब यह हुआ तीन! और खत्म।
तुमने अपनी ज्ञानेंद्रियों के साथ, अपने शरीर के साथ यही किया तुमने इसका दमन किया है। लेकिन तुम असहाय थे। मैं यह नहीं कहता कि इसके दमन के लिए तुम उत्तरदायी हो। तुम्हारा लालन-पालन ही इस प्रकार से हुआ है, किसी ने तुम्हारी ज्ञानेंद्रियों को स्वतंत्रता नहीं दी। इसी प्रकार
हआ है किसी ने तुम्हारी ज्ञानेंद्रियों को स्वतंत्रता नहीं दी। प्रेम के नाम पर केवल दमन जारी रहता