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तुम्हें सपने में भी खयाल नहीं आया होगा। लेकिन तुम अपनी आंखों के स्वामी नहीं हो, और तुमने उनका उपयोग बहुत अनजाने ढंग से बिना यह जाने कि तुम क्या कर रहे हो, किया है।
और वस्तुओं के संपर्क में बहुत अधिक रहने के कारण तुम अपनी आंखों का कर्तापन भूल चुके हो। अगर तुम किसी के साथ रही तो ऐसा होता है कि धीरे-धीरे उसके प्रभावक्षेत्र में आ जाते हो। तुम वस्तुओं के संपर्क में इतना अधिक रहे हो कि तुम अपनी' ज्ञानेंद्रियों की आंतरिक गुणवत्ता भूल चुके हो। तुम वस्तुओं को देखते हो, लेकिन अपने देखे जाने को तुम कभी नहीं देखते। तुम गीतों को सुनते हो, लेकिन तुम कभी उन सूक्ष्म तरंगो को, अपने अस्तित्व की ध्वनि को, जो तुम्हारे भीतर चली जाती हैं, कभी नहीं सुनते।
मैं तुमसे एक कहानी कहना चाहूंगा:
एक अत्यंत आवारा व्यक्ति में गजब का आत्मविश्वास था। उसने एक जगमगाते रेस्तरां में छक कर भोजन किया और मैनेजर से कहने लगा मेरे प्रिय महोदय, मुझे आपके यहां का भोजन बहुत पसंद आया है, लेकिन दुर्भाग्य से मैं इसमें से किसी भी चीज का दाम नहीं चुका सकता, मेरे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है। अब क्रोधित मत हों। जैसा कि आप देख सकते हैं कि मैं पेशेवर भिखारी हैं। मैं अतिशय प्रतिभाशाली भिखारी भी हूं। मैं बाहर जाकर केवल एक घंटे के अंदर ही उतनी धन राशि ला सकता हूं जितना मुझ पर इस खाने के लिए आपका बकाया है। लेकिन फिर भी स्वाभाविक ही है कि आप मेरे लौटने की बात का भरोसा नहीं कर सकते हैं, यह बात मैं पूरी तरह से समझता हूं। मेरा साथ देने के लिए आपका स्वागत है, लेकिन क्या आप जैसा कोई व्यक्ति जो इतने सुप्रसिद्ध रेस्तरां का मालिक है, मेरे जैसे स्तर के आदमी के साथ देखा जाना पसंद करेगा? नहीं। इसलिए श्रीमन् हमारी छोटी सी समस्या का एकदम सही समाधान मेरे पास है। मैं यहां आपकी प्रतीक्षा करूंगा और आप बाहर जाकर तब तक भीख मांग लें जब तक कि इस भोजन का मूल्य आपके पास एकत्रित न हो
जाए।
अगर तुम भिखारी का साथ पकड़ोगे तो तुम भिखारी हो जाओगे। वह तुम्हें अपनी तरह का बनाने के लिए हजारों ढंग सुझा देगा।
हमने विषय वस्तुओं के साथ अपना संबंध इतने लंबे समय से बनाया हआ है कि अपने विषयी स्वरूप को हम भूल बैठे हैं। हम बाहर की ओर इतने दिनों से केंद्रित रहे हैं, कि अपने व्यक्ति होने को भूल चुके हैं। वस्तुओं से इस दीर्घकालीन जुड़ाव ने तुम्हारी अपनी ही प्रतिभा को नष्ट कर दिया है। तुमको वापस घर लौटना पडेगा।
योग में जब तुम अपनी देखती हुई आख को देखना आरंभ करते हो, तो तुम्हें सूक्ष्म ऊर्जा का संज्ञान होता है। वे इसे तन्मात्रा कहते हैं। जब तुम अपनी देखती हुई आख को देख पाते हो तो आंखों के एकदम पीछे तुम्हें ऊर्जा की एक विराट मात्रा दिखाई पड़ती है। यह आख की ऊर्जा, तन्मात्रा है। कान