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होता है कि प्रत्येक जगह पर लोग इस विधि से या उस विधि से सहस्रार पर घटने वाले इस परम संश्लेषण के प्रति जाग्रत और चैतन्य हुए हैं। यहूदी कपाल टोपी का उपयोग करते हैं; सहस्रार के ठीक ऊपर होती है। हिंदू बालों का एक गुच्छा उस जगह रहने देते हैं, वे इसे चोटी, शिखा कहते हैं। ये बाल ठीक उसी स्थान पर बढ़ाए जाते हैं जहां सहस्रार है या होना चाहिए। कुछ ऐसे ईसाई समाज हैं जो ठीक उसी स्थान को केशरहित कर लेते हैं जब कोई सदगुरु शिष्य को आशीष देता है तो अपना हाथ वह उसके सहस्रार पर रखता है, और अगर शिष्य वास्तव में ग्रहणशील समर्पित है तो उसे अचानक काम-केंद्र से सहस्रार की ओर ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन की अनुभूति होती है।
कभी-कभी जब मैं तुम्हारे सिर को स्पर्श करता हूं और तुम अचानक कामुक हो जाते हो, तो भयभीत मत होना, सिकुड़ मत जाना, क्योंकि ऐसा ही होना चाहिए। ऊर्जा काम - केंद्र पर है, यह अपनी कुंडली को खोलना शुरू कर देती है। तुम डर जाते हो, तुम सिकुड़ते हो, तुम इसका दमन करते हो—क्या हो रहा है? और अपने सदगुरु के चरणों में बैठे हुए कामुक हो जाना जरा अशोभनीय, घबड़ा देने वाला लगता है। ऐसा नहीं है। इसे होने देना, इसे घटने देना, और शीघ्र ही तुम पाओगे कि इसने पहले केंद्र को और दूसरे केंद्र को पार कर लिया है और अगर तुम समर्पित हो तो एक क्षण में ही ऊर्जा सहस्रार पर गतिमान हो गई होती है, और तुम अपने भीतर एक नई खिलावट की अनुभूति करोगे । यही कारण है शिष्य को अपना सर नीचे झुकाना होता है ताकि सदगुरु उसका सर छू सके।
विषयी और विषय का, बाह्य और अंतर का पुन: और भीतरी मिलते तो हैं, किंतु क्षण भर के लिए ही
अंतिम संश्लेषण घटता है। काम - भोग में बाहरी सहस्रार में वे सदा के लिए मिल जाते हैं।
इसी कारण मैं कहता हूं व्यक्ति को संभोग से समाधि की ओर यात्रा करनी पड़ेगी। संभोग में निन्यानबे प्रतिशत सेक्स है और एक प्रतिशत सहस्रार सहस्रार में निन्यानबे प्रतिशत सहस्रार है, एक प्रतिशत सेक्स। दोनों संयुक्त हैं, वे ऊर्जा की गहरी धाराओं द्वारा जुड़े हुए हैं। इसलिए अगर तुमने सेक्स का आनंद लिया है तो अपना घर वहां मत बनाओ सेक्स सहस्रार का एक झरोखा मात्र है। सहस्रार तुम्हें हजारों गुना आशीष, आनंद देने जा रहा है। बाह्य और अंतस मिलते हैं, मैं और तू मिलते हैं, पुरुष और स्त्री मिलते हैं, यिन और यांग मिलते हैं और यह मिलन परम है। फिर कोई बिछुड़ना नहीं होतो, फिर कोई अलगाव नहीं होता ।
इसी को योग कहते हैं। योग का अभिप्राय है दो का मिल कर एक हो जाना। ईसाईयत में रहस्यदर्शियों ने इसे यूनियो मिष्टिका कहा है, यह योग का बिलकुल ठीक अनुवाद है। यूनियो मिष्टिका, रहस्यमय एकत्व । सहस्रार पर अल्फा और ओमेगा, आरंभ और अंत मिल जाते हैं। कामकेंद्र में है आरंभ। काम- केंद्र तुम्हारा अल्फा है, समाधि तुम्हारा ओमेगा है और ओमेगा न मिलें, जब तक कि तुम इस परम एकता को उपलब्ध न कर लो, तुम दुखी रहोगे, क्योंकि वही तुम्हारी नियति है। तुम अतृप्त रहोगे। तुम संश्लेषण के इस उच्चतम शिखर से ही परितृप्त हो सकते हो।
और जब तक कि अल्फा