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होती है जब तुम इसे देने में समर्थ होते हो। कंठ-चक्र पर यह नया संश्लेषण घटित होता है। तुम स्वीकार कर सकते हो और तुम प्रदान कर सकते हो।
ऐसे लोग हैं जो एक अति से दूसरी अति पर चले जाते हैं। पहले वे देने में असमर्थ थे, वे केवल ले ही सकते थे, फिर वे बदल जाते हैं, वे दूसरी अति पर पहुंच जाते है-अब वे दे सकते हैं किंतु ले नहीं सकते। यह भी असंतुलित ढंग है। वास्तविक व्यक्ति भेटें स्वीकार करने और उन्हें देने में समर्थ होता है। भारत में तुम्हें ऐसे अनेक संन्यासी, अनेक तथाकथित महात्मा मिल जाएंगे जो धन नहीं छुएंगे। अगर तुम उन्हें कुछ दो, तो वे पीछे हट जाएंगे, जैसे कि तुमने कोई सांप या कोई जहरीली वस्तु उनके सामने ला दी है। वह पीछे को हटना यही दिखाता है कि अब वे दूसरी अति पर चले गए हैं, अब वे ले पाने में असमर्थ हो चुके हैं। दुबारा उनका कंठ-चक्र आधा कार्य कर रहा है। और कोई केंद्र तब तक वास्तविक रूप से सक्रिय नहीं होता जब तक कि वह पूरी तरह कार्यरत न हो, जब तक कि चक्र पूरे ढंग से न घूमे, घूमता जाए और ऊर्जा क्षेत्रों का निर्माण करे।
फिर है 'तृतीय नेत्र' का चक्र। तृतीय नेत्र के चक्र पर दायां और बायां मिलता है, पिंगला और इड़ा मिलते हैं और सुषम्ना बन जाते हैं। मस्तिष्क के दोनों गोलार्ध तृतीय नेत्र पर मिलते हैं; यह दोनों नेत्रों के ठीक मध्य में है। एक नेत्र दाएं का प्रतिनिधित्व करता है, दूसरा नेत्र बाएं का प्रतिनिधित्व करता है, और यह ठीक बीचोंबीच में है। तृतीय नेत्र पर इन बाएं और दाएं मस्तिष्कों का मिलन होता है, यह बहुत उच्च संश्लेषण है। लोग इस बिंदु तक ही व्याख्या करने में समर्थ रहे हैं। इसीलिए रामकृष्ण भी तृतीय नेत्र तक ही व्याख्या कर पाए। और जब उन्होंने अंतिम, सहस्रार पर घटने वाले परम संश्लेषण के बारे में बात करना आरंभ किया, वे बार-बार मौन में, समाधि में चले गए। यह इतना अधिक था कि वे इसमें डूब गए। यह बाढ़ की भांति था, वे इसके द्वारा सागर की ओर बहा दिए गए। वे अपने आप को चैतन्य, जाग्रत नहीं रख सके।
परम संश्लेषण 'सहस्रार' शीर्ष चक्र पर घटित होता है। इस सहस्रार के कारण ही सारे संसार में राजा, सम्राट, महाराजा और महारानिया मुकुट का प्रयोग करते हैं। यह औपचारिक हो चुका है, लेकिन मूलत: इस बात को माना गया था कि जब तक तुम्हारा सहस्रार सक्रिय न हो तुम राजा कैसे बन सकते हो, महाराजा कैसे बन सकते हो? जब तक कि तुम स्वयं पर शासन न कर सको तुम लोगों पर शासन कैसे कर सकते हो? मुकुट के प्रतीक में रहस्य छिपा है। रहस्य यह है कि वही व्यक्ति जो शीर्ष चक्र पर, अपने अस्तित्व के परम संश्लेषण तक पहंच गया है सिर्फ वही राजा या रानी बन सकता है और कोई नहीं। केवल वही दूसरों पर शासन करने में समर्थ है, क्योंकि वह स्वयं का शासक बन चुका है, वह अपने आप का मालिक बन गया है, अब वह दूसरों के लिए सहायक हो सकता है।
वास्तव में जब तुम सहस्रार तक पहुंच जाते हो, तो एक हजार पंखुड़ियों वाला कमल खुलता है, तुम्हारे भीतर का मुकुट खिल उठता है। इसकी तुलना किसी बाहरी मुकुट से नहीं की जा सकती, लेकिन तब यह एक प्रतीक बन जाता है। और सारे संसार में ऐसा प्रतीक अस्तित्व में रहा है। इससे यही प्रदर्शित