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नहीं करते हैं वे स्त्रियों के स्तनों में रुचि नहीं रखते हैं। जो धूम्रपान करते हैं वे उत्सुक हैं, जो धूम्रपान नहीं करते है वे भी उत्सुक हैं; वे या तो पान चूस रहे होंगे या च्यूइंगम या कुछ और, या वे लोग बस पोर्नोग्राफी, नग्न-चित्रण में रुचि रखते होंगे, या वे लगातार स्तन से ही ग्रस्त रहते होंगे, उनके मन में, उनके स्वप्न में, उनकी कल्पना की, मन की उड़ान में स्तन है और उनके चारों ओर स्तन ही स्तन घूमते रहते हैं। वे मौखिक अवस्था के लोग हैं, उसमें अटके हुए।
जब जीसस कहते हैं कि तुम्हें दुबारा बच्चे जैसा हो जाना है, तो उनका अभिप्राय है कि तुम्हें कंठचक्र वापस लौटना पड़ेगा, लेकिन देने वाली एक नई ऊर्जा के साथ। सारे सृजनात्मक लोग देने वाले होते है। हो सकता है कि वे तुम्हारे लिए कोई गीत गाएं, या कोई नृत्य करें, या कोई कवित लिखें, या कोई चित्र बनाए, या तुम्हें कहानी सुनाएं। इन सभी के लिए कंठ-चक्र को देने के एक केंद्र की शांति प्रयुक्त किया जाता है। लेने और देने का मिलन कंठ-चक्र पर घटित होता है। ग्रहण करने की और बांट देने की क्षमता बड़ी से बड़ी एकात्मकताओं में से एक है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो केवल लेने में ही समर्थ हैं, वे दुखी रहेंगे, क्योंकि तुम मात्र लेकर कभी धनी नहीं बनते, तुम देकर ही समृद्ध बनते हो। वस्तुत: जिसे तुम दे सको सिर्फ वही तुम्हारा है। यदि तुम न दे सको तो यह मात्र तुम्हारा विश्वास ही है कि वह तुम्हारा है, यह तुम्हारा नहीं है, तुम इसके मालिक नही हो। अगर तुम अपना धन नहीं दे सकते तो तुम इसके मालिक नहीं हो, तब तो धन ही मालिक है। अगर तुम इसे दे सको, तो निश्चित रूप से तुम ही मालिक हो। यह विरोधाभास जैसा ही दिखता है, लेकिन मैं इसे फिर से दोहरा दूं तुम उसी के मालिक हो सकते हो जिसे तुम दे सको। जिस क्षण तुम देते हो उसी क्षण में तुम मालिक, समृद्ध हो जाते हो। देना तुम्हें समृद्धि प्रदान करता है।
कंजूस लोग संसार मे सबसे दुखी और दरिद्र लोग हैं-दरिद्रों से भी दरिद्र। वे दे ही नहीं सकते, वे अटक गए हैं। वे जमा करते चले जाते हैं। उनके द्वारा जमा किया हुआ उनके अस्तित्व पर एक बोझ बन जाता है, यह उन्हें मुक्त नहीं करता। वस्तुत: अगर तुम्हारे पास कुछ है, तो तुम और मुक्त हो जाओगे। लेकिन कंजूसों को तो देखो, उनके पास काफी है, लेकिन वे बोझ से दबे हैं, वे मुक्त नहीं हैं। उनसे तो भिखारी भी ज्यादा मुक्त हैं। उनको क्या हो गया है? उन्होंने अपने कंठ-चक्र का उपयोग सिर्फ लेने के लिया किया है। न सिर्फ उन्होंने अपने कंठ-चक्र का उपयोग देने में नहीं किया है, बल्कि वे फ्रायड द्वारा बताए गए दूसरे केंद्र, गुदा तक भी नहीं पहुंचे हैं। ये लोग सदैव जमा करने वाले, कंजूस, कब्जग्रस्त होते है; हमेशा कब्ज से पीड़ित रहते हैं। याद रखो, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि कब्ज से पीड़ित सभी लोग कंजूस होते हैं, अन्य कारण भी हो सकते हैं, लेकिन कंजूस निश्चित तौर से कब्ज के शिकार होते हैं।
फ्रायड कहता है कि स्वर्ण और मल में कुछ समानता होती है। दोनों पीले दिखते हैं। और जो लोग कब्ज से पीड़ित हैं वे स्वर्ण के प्रति बहुत ज्यादा आकर्षित रहते हैं। अन्यथा सोने का कोई अस्तित्वगत मूल्य नहीं है। न तुम इसे खा सकते हो, न तुम इसे पी सकते हो। तुम इससे क्या कर