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आधा काम है और जल्दी ही बच्चा इसके बारे में भूल जाता है। वह बस ग्रहण ही करता है। अभी वह दे नहीं सकता। उसका प्रेम निष्क्रिय है और अगर तुम प्रेम मांग रहे हो, तो तुम किशोरवय रहोगे, तुम बचकाने बने रहोगे। जब तक तुम वयस्क नहीं होते कि तुम प्रेम दे सको, तुम परिपक्व नहीं हो पाए हो। प्रत्येक व्यक्ति प्रेम की चाह रखता है, प्रेम मांगता है, और देने वाला करीब-करीब कोई भी नहीं है। सारे संसार में यही तो पीड़ा है और हरेक व्यक्ति जो मांगता है वह सोचता है कि वह दे रहा है, विश्वास करता है कि वह दे रहा है।
मैंने हजारों लोगों में झांक कर देखा है, सभी प्रेम के लिए भूखे हैं, प्रेम के लिए प्यासे हैं, लेकिन कोई किसी भी रूप में देने की कोशिश नहीं कर रहा है। और वे सभी यही विश्वास करते हैं कि वे दे रहे हैं लेकिन उन्हें मिल नहीं रहा है। जब तुम देते हो तो स्वाभाविक तौर से तुम्हें मिलता भी है। यह किसी और ढंग से कभी नहीं होता। जिस क्षण तुम देते हो, प्रेम तुम्हारी और उमड़ पड़ता है। इसका लोगों और व्यक्तियों से कुछ भी लेना देना नहीं है इसका संबंध परमात्मा की ब्रह्मांडीय ऊर्जा से है।
कंठ - चक्र लेने और देने का मिलन है। तुम इससे लेते हो और इसी से देते हो। जीसस का कथन कि तुम्हें दुबारा बालवत होना पड़ेगा का यही अर्थ है। यदि तुम इस बात को योग की शब्दावली में अनुवाद करो तो इसका अर्थ होगा दुबारा तुम्हें कंठ चक्र पर आना पड़ेगा। बच्चा धीरे धीरे इसे भूलता जाता है।
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अगर तुम फ्रायड के मनोविज्ञान में देखो, तो तुम्हें इसके समतुल्य बात उसमें भी मिलेगी । फ्रायड का कहना है कि बच्चे की पहली अवस्था मौखिक है, दूसरी गुदीय है, और तीसरी जननेंद्रिक है। फ्रायड का सारा मनोविज्ञान तीसरे पर आकर समाप्त हो जाता है। निस्संदेह यह मनोविज्ञान हु अपर्याप्त, बहुत निम्नतल का बहुत आशिक है, और मनुष्य के नितांत निचले स्तर के क्रियाकलापों से संबंधित है। मौखिक अवस्था, हां, ठीक है, बच्चा कंठ - केंद्र का उपयोग बस ग्रहण करने के लिए करता है। और जब वह ग्रहणशील हो जाता है तो उसका अस्तित्व गुदा उन्मुख हो जाता है।
क्या तुमने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि कुछ लोग अपनी मृत्यु पर्यंत मौखिक अवस्था को ही पकड़े रहते हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें तुम धूम्रपान करता हुआ पाओगे, ये मौखिक अवस्था के लोग है। वे अभी भी यही सब किए जा रहे हैं... धुंआ, सिगरेट, सिगार इन सबसे ऐसी अनुभूति होती है जैसे कि मां के दूध जैसी कोई उष्ण चीज उनके कंठ - चक्र से होकर प्रवाहित हो रही है, और वे मौखिक अवस्था में ही सीमित रहते हैं, वे कुछ दे नहीं सकते। अगर कोई व्यक्ति अधिक धूम्रपान करता है, रोग स्मोकर है, तो लगभग हमेशा ही वह प्रेम देने वाला नहीं होता। वह मांग करता है, लेकिन वह देगा नहीं।
वे लोग जो अत्यधिक धूम्रपान कर रहे हैं सदैव स्त्रियों के स्तनों में अत्यधिक रुचि रखते हैं। ऐसा होगा ही, क्योंकि सिगरेट चुचुक, निपल का विकल्प है मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जो लोग धूम्रपान