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जाते हो, डूब जाते हो। तुमने एक ऐसे सौंदर्य और अदभुत आनंद में स्नान कर लिया होता है कि तुम एक शब्द भी नहीं बोल सकते'।
लेकिन पतंजलि ने एक असंभव कार्य किया है। उन्होंने प्रत्येक चरण को, प्रत्येक एकीकरण को, प्रत्येक चक्र को, इसकी क्रिया विधि को, और इसका अतिक्रमण कैसे करें, सहस्रार तक ही नहीं वरन उसके भी आगे, जितना संभव था उतना ठीक बताया है। प्रत्येक चक्र पर, ऊर्जा के प्रत्येक चक्र पर, एक निश्चित एकीकरण घटता है। जरा इसको समझो।
काम-केंद्र, पहले केंद्र पर, जो सर्वाधिक आदिम और सर्वाधिक प्राकृतिक है, सभी के लिए उपलब्ध है, बाहरी और भीतरी के बीच एकीकरण घटता है। निःसंदेह यह क्षणिक है। जब एक स्त्री का पुरुष से मिलन होता है या पुरुष का स्त्री से मिलन होता है। तो यह एक क्षण को जरा से समय के लिए जहा, बाहरी और भीतरी एक दूसरे से मिलते हैं और एकरूप होकर एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं, आता है। काम का, शिखर अनुभव का, यही सौंदर्य है कि दो ऊर्जाएं, परिपूरक ऊर्जाएं मिलती हैं और एक संपूर्णता बन जाती हैं। लेकिन यह क्षणिक होता है, क्योंकि यह मिलन, सर्वाधिक स्थूल अवयव, देह के माध्यम से होता है। देह केवल सतह का ही स्पर्श कर सकती है, लेकिन यह वास्तव में एक-दूसरे में प्रवेश नहीं कर सकती। यह बर्फ के टुकड़ों की तरह है। अगर तुम दो बर्फ के टुकड़ों को पास-पास रखो तो वे एक दूसरे को छू सकते हैं लेकिन अगर वे पिघल कर पानी बन जाए तो वे मिल जाते हैं
और एक दूसरे में विलीन हो जाते है। तभी वे आत्यांतिक केंद्र तक पहंचते हैं। और अगर पानी वाष्पित हो जाए तब यह मिलन बहुत, बहुत गहरा हो जाता है। तब वहां न मैं, न तू न भीतर, न बाहर, कुछ नहीं रहता।
यह पहला केंद्र, 'काम-केंद्र' तुम्हें एक निश्चित एकरूपता देता है। इसी कारण काम का इतना अधिक आकर्षण है। यह स्वाभाविक है अपने आप में यह लाभप्रद और अच्छा है, लेकिन अगर तम यहीं रुक गए तो तुम महल के दरवाजे पर रुक गए हो। दरवाजा अच्छा है यह तुम्हें महल के भीतर ले आता है, किंतु यह कोई ऐसा स्थान नहीं है जहां तुम्हारा वास हो सके, यह कोई सदा के लिए रुक जाने का स्थान भी नहीं है... और अन्य केंद्रों पर उच्चतर एकीकरण के उस आनंद से जो तुम्हारी प्रतीक्षा में है, तुम चूक जाओगे। और उस आनंद, हर्ष और प्रसन्नता की तुलना में काम का सौंदर्य कुछ भी नहीं है, कामवासना का सुख कुछ भी नहीं है। यह तो बस तुम्हें क्षणिक झलक भर दिखाता है।
दूसरा चक्र है 'हारा।' हारा-केंद्र पर जीवन और मृत्यु मिल जाते हैं। अगर तुम दूसरे चक्र पर पहुंचे हो तो तुम एकीकरण के उच्चतर शिखर अनुभव पर पहुंच जाते हो। जीवन मृत्यु से मिलता है, सूर्य चंद्रमा से मिल रहा होता है। और अब मिलन भीतरी है, इसलिए यह मिलन अधिक स्थिर, अधिक स्थायी हो सकता है, क्योंकि तुम किसी अन्य पर निर्भर नहीं हो। अब तुम्हारा मिलन तुम्हारे अपने आंतरिक पुरुष या अपनी आंतरिक स्त्री से हो रहा होता है।