________________
सत्व और
पुरुष का विभेद बोध होने के उपरांत ही अस्तित्व की समस्त दशाओं का ज्ञान और उन पर प्रभुत्व उदित होता है।
अव्याख्य की व्याख्या करने में पतंजलि की कुशलता अनुपम है। कभी भी कोई उनसे आगे निकल
पाने में समर्थ नहीं हो पाया है। उन्होंने चेतना के आंतरिक संसार का जितना ठीक संभव हो सकता है, वैसा मानचित्रण कर दिया है; उन्होंने लगभग असंभव कार्य कर दिखाया है।
मैंने रामकृष्ण के बारे में एक कथा सुनी है :
एक दिन वे अपने शिष्यों से बोले, आज मैं तुम्हें सारी बात बता दूंगा, और कुछ भी रहस्य नहीं रखूंगा। उन्होंने चक्रों की स्पष्ट व्याख्या की, और हृदय तथा कंठ - चक्र तक उनसे संबंधित अनुभवों को भी व्यक्त कर दिया, और तब दोनों भौहों के मध्य के बिंदु की ओर संकेत करते हुए कहा परम सत्ता का प्रत्यक्ष शान होता है, और जब मन यहां आता है तो व्यक्ति को समाधि का अनुभव होता है। एक झीना सा पारदर्शी आवरण ही तब परम सत्ता और व्यक्तिगत सत्ता के मध्य में बचा रहता है। तब साधक को अनुभव होता है...। इतना कह कर, जैसे ही उन्होंने परम सत्ता के साक्षात के बारे में विस्तार से बताना शुरू किया, वे समाधि में डूब गए, और सुध-बुध खो बैठे। जब समाधि टूटी और वे वापस सामान्य अवस्था में लौटे, तो उन्होंने फिर इसका वर्णन करने का प्रयास किया और पुनः समाधि में चले गए, फिर वे अपनी सुध-बुध खो बैठे। कई कोशिशों के बाद रामकृष्ण के आसू बह निकले, वे रोने लगे, और अपने शिष्यों से बोले कि इसके बारे में कुछ बताना असंभव है।
लेकिन रामकृष्ण ने कोशिश की, उन्होंने अनेक उपायों से, विभिन्न दिशाओं से समझाने का प्रयास किया, और उनके पूरे जीवन भर सदा यही होता रहा। जब कभी वे तृतीय नेत्र के चक्र के पार जाते और सहस्रार की ओर बढ़ने लगते, वे किसी आंतरिक भाव से इस कदर वशीभूत हो जाते कि सिर्फ इसकी स्मृति मात्र से, इसे वर्णित करने की कोशिश से ही, वे डुबकी लगा जाते। घंटों वे अचेत पड़े रहते। यह स्वाभाविक था क्योंकि सहस्रार का आनंद ऐसा है कि व्यक्ति करीब-करीब उसके पूर्ण नियंत्रण में हो जाता है। यह आनंद ऐसा सागर सा असीम है कि व्यक्ति पर आच्छादित होकर उसे अपने में समा लेता है जब व्यक्ति तीसरे नेत्र का अतिक्रमण कर लेता है तो वही व्यक्ति नहीं रह जाता।
रामकृष्ण ने कोशिश की और असफल रहे, वे इसका वर्णन नहीं कर सके। बहुत से अन्य लोगों ने तो इसका प्रयास भी नहीं किया। लाओत्सु इसी के कारण अपने पूरे जीवन भर ताओ के जगत के बारे में कुछ भी कहने से इनकार करता रहा। इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता, और जिस क्षण तुम इसे कहने की कोशिश करते हो तुम एक आंतरिक चक्रवात में, भंवर में गोता खा जाते हो। तुम खो