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मधुर-जल की एक छोटी सी झील,
छिपी है श्यामल जंगल में,
वही उद्गम है सागर का।
ओशो, आप मीठे और नमकीन हैं;
और इस क्षण में बहुत नमकीन। मैं यहां जाने के कारण उदासी अनुभव कर रही हूं
मैं इस स्रोत तक पुन: वापस आना चाहती हैं
पीती रहूं तब तक कि मैं इतना भर जाऊं
कि मैं स्रोत में गिर पड़े।
यह आनंद उर्मिला ने पूछा है।
यह सच है, ऐसा ही है। जितना अधिक तुम मुझे पियोगी, उतना ही तुम प्यासी हो जाओगी। क्योंकि मैं तुम्हें तृप्त करने वाला नहीं हूं। मैं तुम्हें और-और अतृप्त बनाता चला जाऊंगा, क्योंकि यदि तुम मुझसे तृप्त हो गईं तो तुम कभी परमात्मा तक नहीं पहुचोगी। मैं यहां अधिक प्यास निर्मित करने के लिए हूं। मैं यहां तुम्हें और भूखा बना देने के लिए हूं। ताकि एक दिन तुम बस प्यास, बस भूख, शुद्ध भूख ही रह जाओ। उस क्षण में तुम विस्फोटित और तिरोहित हो जाती हो और परमात्मा मिल जाता है। अगर तुम मुझसे ही तृप्त हो गईं, तो मैं तुम्हारा मित्र नहीं शत्रु बन जाऊंगा, क्योंकि तब तुम मुझसे और मेरे उत्तरों से बंध जाओगी।
मैं अधिक से अधिक एक द्वार हो सकता हूं। मुझसे होकर गुजर जाओ, मुझसे बंधो मत। यात्रा का आरंभ मेरे साथ होता है, इसका अंत मुझ पर नहीं होता।
और मैं जानता हूं कि तुम्हें उदासी अनुभव हो रही होगी। लेकिन अपनी उदासी के प्रति सजग हो जाओ और इससे तादात्म्य मत बनाओ। यह वहा है, तुम्हारे चारों ओर, लेकिन यह तुम नहीं हो। इस अवसर का भी अधिक जागरूक, अधिक साक्षी होने में उपयोग करो। और अगर तुम अपनी उदासी के साक्षी हो सको, तो उदासी मिट जाएगी। और अगर तुम अपनी उदासी के प्रति सजग हो सको तो तुम सजगता के द्वारा इसके मिटने में सहायक हो सकती हो, जहां कहीं भी तुम जाओ मैं तुम्हारे साथ