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पहले वे बोले नहीं, कोई चुप न रहा फिर उन्होंने कहा ही, लेकिन कोई भी चुप न रहा; फिर उन्होंने हां ओर ना दोनों एक साथ बोल दिए, लेकिन कोई चुप नहीं था।
वह लौट कर मेरे पास आया और उसने कहा : इन लोगों को सिखाया नहीं जा सकता, क्योंकि जो लोग मौन हो, उन्हीं को सिखाया जा सकता है।
मौन शिष्यत्व है। अगर यहां तुम पहले से ही ज्ञानी होकर आए हो, तो तुम्हें सिखाया नहीं जा सकता। अगर तुम यहां नकार का दृष्टिकोण, नास्तिक की दृष्टि, संदेह और शक लेकर आए हो तो तुम्हें सिखाया नहीं जा सकता। या अगर तुम कहो कि मुझे थोड़ा सा मुझे पता है और थोड़ा मैं नहीं जानता, तो भी तुम्हें सिखाया नहीं जा सकता। तुम चालाक बन रहे हो क्योंकि ये तीन दृष्टिकोण है नहीं कहने वाले का, ही कहने वाले का, और उसका जो दोनों नावों पर यात्रा करने की कोशिश कर रहा है, जिसका प्रयास है कि केक खा भी लिया जाए और केक पूरा साबुत भी रहे, जो चालबाज है तो संसार में ये जो तीन प्रकार के व्यक्ति हैं, ये सभी समझने में असमर्थ हैं।
केवल उसे जो मौन है, जो अपने मौन के द्वारा उत्तर देता है, और मुक्त - हृदय है, उसी को । सखाया जा सकता है। इस कहानी का यही मतलब है।
मुल्ला नसरुद्दीन को जितना ज्यादा हो सके उतना पढ़ो, और उसे समझने का प्रयास करो। वहां तुम्हारे लिए महत् आशीष बन सकता है क्योंकि वह हास-परिहास के माध्यम से सिखाता है। उसकी?' प्रत्येक कहानी अपने गर्भ में अदभुत अर्थ समाए हुए है, लेकिन तुम्हें इसे अनावृत करना पड़ेगा। इसीलिए मैं कहता हूं कि ऐसे लोग हैं जो उसे मूर्ख समझते हैं। वे बेस एक कहानी पढ़ते हैं और वे हंसते हैं, फिर उनके लिए बात समाप्त हो गई। वे इसे बस एक चुटकुला समझते हैं। ऐसा नहीं है। कोई चुटकुला महज एक चुटकुला नहीं होता। अगर तुम बुद्धिमान हो तो तुम इसके भीतर झांकोगे, आखिर असली बात क्या है और एक बार तुम इसके आंतरिक अर्थ की झलक भर पा लो, तुम अत्यधिक प्रसन्न हो जाओगे तुम एक नये आयाम के प्रति सजग होने लगोगे ।
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अब मुल्ला नसरुद्दीन को पश्चिमी देशों में भी पढ़ा जाता है, लेकिन लोग चूक रहे हैं। वे सोचते हैं कि वे सिर्फ मजाक भर हैं। वे मजाक ही नहीं हैं। वे हास-परिहास के माध्यम से तुम्हें उस परम पावन को सिखाने का उपाय हैं और इसे सिर्फ हास्य के माध्यम से ही सिखाया जा सकता है केवल हास्य के माध्यम से। क्योंकि सिर्फ हास्य ही तुम्हें विश्रांत कर सकता है। और परमात्मा को गहन विश्रांत में ही जाना जा सकता है। जब तुम हंसते हो तो तुम्हारा अहंकार खो जाता है। जब हंसी यथार्थ में प्रामाणिक होती है, पेट की हंसी, जब तुम्हारा सारा शरीर इस परमानंद की ऊर्जा से स्पंदित होता है, जब हंसी तुम्हारे सारे अस्तित्व पर फैल जाती है, जब तुम बस इसी में खो जाते हो, तभी तुम परमात्मा के लिए खुलते हो। गंभीर लोग कभी परमात्मा तक नहीं पहुंचे। वे पहुंच ही नहीं सकते। परमात्मा ऐसा खतरा मोल नहीं लेगा। हूं..... वे तो उसे उबा कर मार ही है.. डालेंगे।