Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/43
गई है।
उमास्वामि-श्रावकाचार
इसके रचनाकार के विषय में दो मत हैं। कोई इसके रचयिता तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वामि को मानते हैं तो कोई इसे उमास्वामी नाम के किसी अन्य आचार्य की कृति मानते हैं। किसी का कहना है कि उमास्वामी के नाम पर किसी भट्टारक ने इस श्रावकाचार की रचना की है किन्तु यह रचना तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता उमास्वामि या उमास्वाति का नहीं है। कई प्रमाणों से यह मत सही प्रतीत होता है।'
यह कृति संस्कृत शैली के ४७७ पद्यों में ग्रथित है। इसमें अध्याय विभाग नहीं है। प्रारम्भ में धर्म का स्वरूप बताकर सम्यक्त्व का सांगोपांग वर्णन किया है। पुनः देवपूजादि श्रावक के षट् कर्त्तव्यों में विभिन्न परिमाणवाले जिनबिम्ब के पूजने के शुभ-अशुभ फल का वर्णन है तथा इक्कीस प्रकार वाला पूजन, पंचामृताभिषेक, गुरूपास्ति आदि शेष आवश्यक विधान, बारह प्रकार के तप और दान का विस्तृत वर्णन है। आगे सम्यग्ज्ञान का वर्णन कर सम्यक्चारित्र के विकल भेदरूप श्रावक के आठ मूलगुणों और बारह उत्तरव्रतों का, सल्लेखना का और सप्तव्यसनों के त्याग का उपदेश देकर इसे समाप्त किया है। इस ग्रन्थ के अन्तिम श्लोक में कहा है कि इस सम्बन्ध में जो अन्य ज्ञातव्य बाते हैं, उन्हें मेरे द्वारा रचे गये अन्य ग्रन्थों में देखना चाहिये।
इस श्रावकाचार में पूजनविधि सम्बन्धी कई महत्वपूर्ण बातें भी उल्लिखित हैं, जो अवश्य ही पठनीय है। किशनसिंहकृत-श्रावकाचार
यह श्रावकाचार श्री किशनसिंह जी ने हिन्दी पद्य में निर्मित किया है। यह कृति विविध छन्दों में रची गई है। इस कृति का रचना समय वि.सं. १७८७ है। ग्रन्थकार ने इस कृति को ‘क्रियाकोष' के नाम से भी उल्लेखित किया है। इनकी १० रचनाएँ और भी उपलब्ध है।
इस श्रावकाचार में 'उक्तं च' कहकर १४ श्लोक और गाथाएँ उद्धृत की गई है। इन्होंने अपने गुरू आदि का कोई उल्लेख नहीं किया है। इससे ज्ञात होता
' देखिए, श्रावकाचारसंग्रह भा. ४, पृ. ४१ २ यह ग्रन्थ 'श्री शान्तिधर्म दि. जैन ग्रन्थमाला' उदयपुर से, वी.सं. २४६५ में, पं. हलायुध के हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हुआ है। २ यह रचना 'श्रावकाचार संग्रह' भा. ५ में सानुवाद संकलित है।
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