Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/325
ग्रन्थ है। इसमें साधु-साध्वी के संयमी जीवन में लगने वाले दोषों की शुद्धि के लिए चार प्रकार के प्रायश्चित्त का विधान किया गया है। यह प्राकृत गद्य में हैं। इसमें लगभग १५०० सूत्र हैं। वे बीस उद्देशकों में विभक्त हैं। इन बीस उद्देशकों में प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया (विधि) प्रतिपादित की गई है।
प्रथम उद्देशक में मासिक अनुद्घातिक (गुरुमास) प्रायश्चित्त का विधान है। दूसरे से लेकर पाँचवे उद्देशक तक मासिक उद्घातिक (लघुमास) प्रायश्चित्त का उल्लेख है। उद्देश्क छह से लेकर ग्यारह तक चातुर्मासिक अनुद्घातिक (गुरुचातुर्मास) प्रायश्चित्त का प्रावधान है। उद्देशक बारह से लेकर बीस तक चातुर्मासिक उद्घातिक (लघुचातुर्मास) प्रायश्चित्त का कथन है।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि इन अध्ययनों का जो विभाजन किया गया है उसका आधार मासिक उद्घातिक, मासिक अनुद्घातिक, चातुर्मासिक उद्घातिक, चातुर्मासिक अनुद्घातिक और आरोपणा, ये पाँच विकल्प हैं। मुख्यतः प्रायश्चित्त के दो ही प्रकार है- मासिक और चातुर्मासिक। शेष द्विमासिक, त्रिमासिक, छहमासिक पर्यन्त ये प्रायश्चित्त आरोपणा के द्वारा बनते हैं। बीसवें अध्ययन का प्रमुख विषय आरोपणा' ही है। यहाँ प्रायश्चित्त विधान की चर्चा करने के पूर्व यह दर्शाना आवश्यक है कि प्रस्तुत सूत्र में प्रायश्चित्त के जो चार प्रकार बताये गये हैं वे प्रायश्चित्त किन-किन स्थितियों में किस-किस प्रकार से लगते हैं? तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्ततालिका इस प्रकार हैं -
(पराधीनता में या असावधानी में होने वाले अपराधादि का प्रायश्चित्त) | प्रायश्चित्त । जघन्यतप | मध्यमतप । उत्कृष्टतप १. लघुमास चार एकाशना | पन्द्रह एकाशना | सत्तावीस एकाशना २. गुरुमास चार नीवि पन्द्रह नीवि | तीस नीवि ३.लघु चौमासी चार आयंबिल | साठ नीवि एक सौ आठ उपवास | ४.गुरु चौमासी चार उपवास चार छठ्ठ (बेला) | एक सौ बीस उपवास या
चार मास दीक्षा पयार्य छेद
' विनयपिटक के पातिमोक्ख विभा. में भिक्षु-भिक्षुणियों के विविध अपराधों के लिए विविध प्रायश्चित्तों का वर्णन है, उद्धृत - जैन साहित्य का इतिहास भा. ३ पृ. २२१ ।। २ आरोपणा - एक दोष से प्राप्त प्रायश्चित्त में दूसरे दोष के आसेवन से प्राप्त प्रायश्चित्त का आरोपण करना आरोपणा है। यह पाँच प्रकार की कही गई हैं १. प्रस्थापिता, २. स्थापिता, ३. कृत्सना, ४. अकृत्सना, ५. हाडहड़ा।
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