Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/393
मूलतः लेश्या का सम्बन्ध रंग से है। यदि कृष्ण लेश्या (काले रंग) के परमाणु निरंतर खींचे जा रहे हैं तो व्यक्ति के भाव बुरे बन जाते हैं। इसी प्रकार शेष लेश्याओं के स्वरूप को भी उन-उन रंग के आधार पर समझने का प्रयास करना चाहिए। यहाँ रंगों का ध्यान करना ही लेश्या-ध्यान है। व्यक्तित्व को रूपान्तरित करने की सबसे अधिक शक्तिशाली किन्तु सरल प्रक्रिया है- लेश्या ध्यान। यदि कोई व्यक्ति दृढ़ निश्चय के साथ लेश्या-ध्यान का प्रयोग करें तो निःसंदेह अपने स्वभाव में आमूल-चूल परिवर्तन ला सकता है। लेश्या-ध्यान के द्वारा हमारा पूरा व्यक्तित्व बदल सकता है।
प्रस्तुत कृति में 'लेश्या-ध्यान' की कई दृष्टियों से चर्चा की गई है। इसमें कुल पाँच अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में आध्यात्मिक दृष्टिकोण के आधार पर लेश्या की परिभाषा को समझाया गया है। द्वितीय अध्याय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लेश्या का स्वरूप कहा है उनमें नाड़ी-तंत्र, ग्रन्थि-तंत्र पर रंगों का प्रभाव, आभामण्डल के रंग, रंगों का ध्यान और विभिन्न रंगों के गुण-दोष इत्यादि का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। तृतीय अध्याय में लेश्या-ध्यान क्यों करना चाहिए? लेश्या ध्यान से व्यक्तित्व का रूपान्तरण, रासायनिक परिवर्तन, लेश्याओं का रूपान्तरण, भावधारा का निर्मलीकरण किस प्रकार होता है? आदि का प्रतिपादन किया गया है।
चतुर्थ अध्याय में लेश्याध्यान और उसकी विधि का निर्देश है। इसमें कहा हैं कि लेश्या-ध्यान में साधक अपने ही चैतन्यकेन्द्र पर चित्त को एकाग्र कर वहाँ निश्चित रंग का ध्यान करता है पर यह आवश्यक हैं कि साधक पहले कायोत्सर्ग, दीर्घश्वास प्रेक्षा, शरीर प्रेक्षा और चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा के अभ्यास को साध लें और बाद में लेश्या-ध्यान इस अध्याय में निम्न बिन्दुओं पर चर्चा की गई हैं - १. रंगों का आयोजन और संश्लेष- इस चरण में मुख्य रूप से कहा हैं कि रंगों से हमारे शरीर, मन, आवेगों, कषायों आदि का बहुत बड़ा सम्बन्ध हैं। शारीरिक स्वास्थ्य और बीमारी, मन का संतुलन और असंतुलन, आवेगों में कमी और वृद्धि ये सब उन प्रयत्नों पर निर्भर हैं कि हम किस प्रकार के रंगों का समायोजन करते हैं और किस प्रकार हम रंगों से अलगाव या संश्लेषण करते हैं। उदाहरणतः नीला रंग शरीर में कम होता है तो क्रोध अधिक आता है। श्वेत रंग की कमी होती है, तो अशान्ति बढ़ती है। लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता पनपती है। पीले रंग की कमी होने पर ज्ञान तन्तु निष्क्रिय बन जाते हैं। कोई व्यक्ति बहुत बड़ी समस्या में उलझा हुआ है, समाधान प्राप्त नहीं हो रहा है तब छोटी सी प्रयोग विधि करें शान्त होकर कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठ जाये। श्वास शान्त हो, शरीर शान्त हो, मांसपेशियाँ
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