Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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662 / विविध विषय सम्बन्धी साहित्य
पाक्षिकादि प्रतिक्रमण में छींक आ जाये तो कायोत्सर्ग करने की विधि। इसके साथ ही प्रातःकाल के प्रत्याख्यान पौषध के उपकरण तथा तीन प्रकार के चातुर्मास सम्बन्धी पानी के काल का कोष्ठक दिया गया है।
३. देववंदन - विभाग यह विभाग देववंदन आदि विधियों का विवरण प्रस्तुत करता है। वे विधियाँ इस प्रकार हैं १. पद्मविजयजीकृत चातुर्मासिक देववंदन विधि, २. ज्ञान- विमलसूरिकृत दीपावली देववंदन विधि, ३. विजयलक्ष्मीसूरीकृत ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, ४. रूपविजयजीकृत मौनएकादशी देववंदन विधि, ५. ज्ञानविमलसूरिकृत चैत्रीपूनम देववंदन विधि, ६. कल्याणक आराधना विधि ७. चौदह नियम धारण विधि, ८. उपधानतप विधि, ६. नव्वाणुं यात्रा विधि, १०. सिद्धाचल तीर्थ पर चातुर्मास करने की विधि |
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१. उद्यापन
४. तप-विभाग इस चतुर्थ विभाग में कुल इक्यावन प्रकार के तप की विधियाँ दी गई हैं। इससे सम्बन्धित अन्य विधियाँ भी दी गई हैं। वे निम्न हैं विधि, २. उद्यापन में रखने योग्य उपकरणों की सूची, ३. सर्व तप में सदैव आचरणीय आवश्यक विधि, ४. सर्व तप में नियमित करने योग्य सामान्यविधि, ५. ज्ञानपद पूजा विधि, ६. तप में ग्रहण करने योग्य अनाहारी वस्तुओं की सूची आदि । ५. मुनिआचार-विभाग यह विभाग सोलह प्रकार की विधियों का विवेचन करता है वे विधियाँ ये हैं १. दीक्षा विधि, २. वासचूर्ण अभिमंत्रण विधि, ३. नोंतरा ( आमंत्रण देने) विधि, ४. कालग्राही की विधि, ५. दांडीधर की विधि, ६. काल प्रवेदन की विधि, ७. स्वाध्यायप्रस्थापना विधि, ८. कालमांडला ( पाटली) विधि, ६. पात्रादि संघट्टा करने की विधि, १०. मांडली के सात आयंबिल की विधि, ११. अनुयोग करवाने की विधि, १२ चैत्रमास में कायोत्सर्ग करने की विधि, १३. सांवत्सरिक क्षमायाचना विधि, १४. संघ - तीर्थ मालारोपण विधि, १५. नवकारवाली अभिमंत्रित करने की विधि, १६. साधु कालधर्म को प्राप्त हों, तब साधु एवं श्रावक द्वारा करने योग्य विधि। इसके सिवाय और भी चर्चाएँ की गई हैं जैसे- स्वाध्याय, कालमण्डल, कालग्रहण कितने स्थानों पर भंग होता है? योग में कल्प्याकल्प्य तथा नीवियाता की विशेष जानकारी, साधु के कालधर्म होने पर आवश्यक सामग्री की सूची आदि ।
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६. श्रमणसूत्र - विभाग - इस विभाग में साधु जीवन के आवश्यकसूत्र ( करेमिभंते, श्रमणसूत्र, पाक्षिकअतिचार, पाक्षिकसूत्र, पाक्षिकखामणा आदि ) दिये गये हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विधियाँ भी दी गई हैं यथा १. प्रातः कालीन प्रतिलेखन विधि, २ . स्थापनाचार्य प्रतिलेखन विधि, ३. सज्झाय और उपयोग विधि, ४. संध्याकालीन प्रतिलेखन विधि, ५. गोचरी आलोचना विधि, ६. लोच करवाने की विधि,
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