Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 700
________________ 670/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य पालन करने योग्य नियम (विधि) कहने का भाव प्रदर्शित किया गया है। __इस प्रकरण में उल्लिखित विधियों के नाम इस प्रकार हैं - १. ज्ञानाचार विधि, २. दर्शनाचार विधि, ३. चारित्राचार विधि, ४. पानी ग्रहण विधि, ५. ईया आदि पांचसमिति पालन विधि, ६. स्थंडिल विधि, ७. वसति (उपाश्रय) प्रवेश एवं वसति निर्गमन विधि, ८. संयमी की विशेष नियम विधि। सिरिपयरणसंदोह यह एक संकलित रचना है। यह कृति संकलन की दृष्टि से अपेक्षाकृत उतना महत्त्व न रखती हों किन्तु इसमें प्राचीन रचनाओं का संकलन हुआ है उस दृष्टि से इस कृति का मूल्य मूल ग्रन्थ से भी बढ़कर हो जाता है। इसमें कुल २८ प्रकरण संग्रहीत किये गये हैं। प्रायः ये प्रकरण प्राकृत पद्य में हैं, किंतु जिनेश्वरसूरि रचित 'श्रावकधर्मकृत्य' नामक प्रकरण संस्कृत पद्य में है। इनमें से कुछ प्रकरण ऐसे हैं जिनमें कहीं संक्षिप्त, तो कहीं विस्तृत, तो कहीं सम्पूर्ण प्रकरण ही विधि-विधान का निरूपण करता है। इस कृति में जो प्रकरण यत्किंचित् भी विधि-विधान से सम्बन्धित हैं उनका संक्षेप विवरण इस प्रकार है - १. सावयधम्मपयरणं- यह प्रकरण श्री हरिभद्रसूरि रचित है। इसके १२० पद्य हैं। इसमें श्रावकव्रत सम्बन्धी विधि का निरूपण हुआ है। २. नंदीसरथवो- यह अज्ञातकर्तृक है। इसमें २५ पद्य हैं। ये पद्य नंदीश्वरद्वीप का स्वरूप, उसकी महिमा और उसकी प्राप्ति के उपायों का विवेचन करते हैं। ३. संघसरुवकुलयं- यह अज्ञातकर्तृक है। इसमें १५ पद्य हैं तथा यह कुलक संघ की महिमा एवं संघ भक्ति कैसे? और क्यों करनी चाहिए? इसका वर्णन प्रस्तुत करता है। ४. साहम्मियवच्छलयकुलयं- यह रचना श्री अभयदेवसूरि की है। इसके २५ पद्य हैं। इसमें साधर्मिक भक्ति क्यों और किस प्रकार करनी चाहिए? का उल्लेख होना चाहिये। ५. तित्थमहरिसिकुलयं- यह कृति श्री जिनेश्वरसूरि की है। इसमें प्रमुख एवं शाश्वत सभी तीर्थों की भाववंदना पूर्वक यात्रा विधि का निर्देश है। यह २६ पद्यों में गुम्फित है। 'यह कृति श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढी, रतलाम' ने वि.सं. १९८५ में प्रकाशित की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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