Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 698
________________ 668/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य निषेध, आचार्य को जिनबिम्ब की प्रतिष्टा करवाने का अधिकार, चतुर्दशी का क्षय होने पर पूर्णिमा को पौपधादि करने का विधान, तिथि की वृद्धि में आद्य तिथि का स्वीकार, भोजन करने के बाद पौपध ग्रहण करने का निषेध, सामायिक ग्रहण करते समय प्रातःकाल में प्रथम ‘बइसणं' फिर 'स्वाध्याय' आदेश का विधान, सामायिकादि में उत्सर्गतः प्रावरण (पंगुरणं) आदेश का निषेध, कार्तिकमास की वृद्धि हो तो प्रथम कार्तिक में चातुर्मासिक प्रतिक्रमण का विधान, आगम में जिनप्रतिमा पूजन का विधान, जिनवल्लभसृरि, जिनदत्तसूरि एवं जिनपतिसूरि की सामाचारी का उल्लेख, पदों की व्यवस्था विधि, अनुयोगदान, विसर्जन विधि, पर्युषण-पर्व में भवनदेवता कायोत्सर्ग का विधान, लोच कराने का विधान, घृत गिरने पर उसके दोष निवारण की विधि, छींक आने पर उसके दोष निवारण की विधि, मार्जारी मण्डली में प्रवेश कर जायें तो उसकी दोष निवारण विधि, सामायिक ग्रहण के समय तेरह खमासमण देने का विधान, चैत्रीपूर्णिमा के दिन देववन्दन विधि करने का अधिकार, गुरु के स्तूप की प्रतिष्ठा विधि, कल्पत्रेप उत्तारण की विधि, पौषध ग्रहण विधि, दीक्षा दान विधि, उपधान विधि, साध्वियों को स्वतः कल्पसूत्र पढ़ने का अधिकार, विंशतिस्थानकतप विधि, अस्वाध्याय स्थापन-उत्तारण विधि, साधुओं के द्वारा उत्सर्ग-अपवाद में वस्त्रग्रहण का विधान, स्थापनाचार्य में पंचपरमेष्ठी का विधान और शान्तिक विधान इत्यादि। इस कृति का अवलोकन करने से अवगत होता है कि ग्रन्थकर्ता ने गच्छीय सामाचारियों की प्रामाणिकता को सुपुष्ट करने के लिए आगमग्रन्थों और प्राचीनग्रन्थों के बहुत से उद्धरण भी दिये हैं यही इस ग्रन्थ की विशिष्टता है। सामायारी (सामाचारी) यह जैन महाराष्ट्री प्राकृत में विरचित ३० पद्यों की कति है। इसके कर्ता खरतरगच्छीय जिनदत्तसूरि है। इसमें अपनी सामाचारी के अनुसार कई विषयः का उल्लेख हुआ है उनमें जिनप्रतिमापूजा का विवरण विशेष मननीय है। इसमें स्त्री के लिए मूल-प्रतिमा की पूजा करने का निषेध किया गया है। यह कृति सामाचारी शतक के पत्र क्रमांक १३८ आ, से १३६ आ तक में उद्धृत की गई है। सामायारी (सामाचारी) इसके कर्ता श्री जिनदत्तसूरि के प्रशिष्य श्री जिनपतिसूरि है। इन्होंने यह रचना जैन महाराष्ट्री प्राकृत के ७६ पद्यों में लिखी है। इसमें सामाचारी सम्बन्धी कई विषयों का उल्लेख हुआ है; जैसे कि 'आयरिय-उवज्झाय' सूत्र की तीन गाथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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