Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/439
सर्व चैत्यालयों के उपसंहार रूप में पढ़ी जाती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में इन्द्रध्वज विधान के बारे में उद्धृत उल्लेख यह हैं कि - इन्द्रों ने जहाँ-जहाँ पर पूजाएँ की, वहाँ-वहाँ पर अर्थात् उन-उन चैत्यालयों पर वे ध्वजा आरोपित करते गये, इसलिए इस विधान का इन्द्रध्वज यह नाम सार्थक है। यहाँ यह जानना अनिवार्य है कि इस ग्रन्थ की रचना का आधार भले ही संस्कृत कृति रही हों फिर भी यह रचना मौलिक है। इसमें तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार आदि के आधार से प्रत्येक पर्वतों के चैत्यालयों के साथ-साथ वे पर्वत किस क्षेत्र में हैं? कितने लम्बे चौडे हैं? उनका क्या वर्ण हैं? उन पर कितने क्रूट हैं? इत्यादि का वर्णन बहुत ही सरल व सुन्दर ढंग से किया गया है।
मूल संस्कृत ग्रन्थ अधिकतर अनुष्टुप छन्द में है और उसमें पूर्वोक्त विवरण अति संक्षेप में है। जबकि इस पद्यानुवाद ग्रन्थ की रचना चालीस प्रकार के छन्दों में की गई है। प्रायः जयमालाएँ नए-नए छन्दों में है। कहीं-कहीं जयमालाओं में उन-उन चैत्यालयों के स्थान पर प्रकाश डाला गया है तो कहीं पर प्रभु का गुणगान किया गया है, तो कहीं पर अपने संसार के दुखों की गाथा प्रभु के सामने रखी गयी है और कहीं पर भक्ति के साथ-साथ अध्यात्म व वैराग्य का स्त्रोत उमड़ पड़ा है।
इसमें सर्वप्रथम मंगल स्तुति करते हुए सिद्धों को नमस्कार किया है. फिर ऋषभदेव, शांतिनाथ और महावीर प्रभु को वंदना की गई है। पुनः विधान रचना का उद्देश्य बताकर उसका माहात्म्य दर्शाया गया है। तदनन्तर पूजक का सबसे पहला कर्त्तव्य क्या है? इसका संकेत करके मंडल रचना की विधि बतायी गई है और मंडल पर आरोपित की जाने वाली ध्वजाओं का वर्णन किया गया है। पुनः पूजन प्रारम्भ करने के पूर्व सकलीकरण' आदि विधान अवश्य करने चाहिये एवं पूजन विधान के पूर्ण होने पर हवनविधि करनी चाहिए ऐसा आदेश दिया है। इसमें ध्वजाओं का जो वर्णन किया गया है वह जानने योग्य हैं। हम विस्तार भय से उसका उल्लेख नहीं कर रहे हैं।
पुनः इस 'इन्द्रध्वज विधान' के प्रारम्भ में मंगलस्त्रोत, पुष्पांजलि करके 'देवागम विधि' के द्वारा देवों का आहान किया जाता है। दिशा-विदिशाओं में आठ महाध्वजाएँ एवं मण्डल पर ४५८ ध्वजाएँ विधिवत्
' इस विधान के प्रारम्भ में की जाने वाली क्रियाएँ महाभिषेक, यज्ञ, दीक्षाविधि, इन्द्रप्रतिष्ठाविधि, सकलीकरण, नवदेवतापूजन, अन्त्यपूजाविधि, हवनविधि एवं जाप्यानुष्ठान आदि के लिए 'मण्डलविधान एवं हवन विधि' नामक पुस्तक देखनी चाहिए, जो हस्तिनापुर से प्रकाशित है।
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