Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/553
विषयों का संक्षिप्त विवरण निम्न हैं - इसमें सर्वप्रथम पचास प्रकार के लब्धिपदों के नाम दिये गये हैं उसके बाद इन पचास प्रकार के लब्धिपदों के अन्तर्गत आठ प्रकार की विद्याओं की जपविधि और उसका फल कहा गया है। तदनन्तर चालीस प्रकार के लब्धिपदों का निरूपण किया गया हैं तथा प्रत्येक लब्धिपद का कृ त्यकारित्व भाव बताया गया है। तत्पश्चात् अड़तालीस लब्धिपदों से युक्त यन्त्र का स्वरूप कहा गया है। उसके बाद रेचक-पूरक-कुंभक आदि तेरह प्रकार के जाप बताये गये हैं। इसके साथ ही जाप करने योग्य स्थल, जाप करने का आसन, जाप करने का अधिकारी एवं प्रत्येक जाप का स्वरूप प्रतिपादित हुआ है। तदनन्तर सूरिमन्त्र की वाचना करने के प्रकार कहे गये हैं। उसके पश्चात सूरिमन्त्र जाप के योग्य स्थानादि की चर्चा की गई है। इसके साथ ही मन्त्र की जाप विधि और मन्त्रसिद्धि का फल कहा गया है। इसके बाद गौतम नाम का माहात्म्य बताया गया है।
इसी अनुक्रम में पार्श्वनाथ सन्तानीय केशीगणधर का मन्त्र एवं उसकी जपविधि वर्णित की है। सूरिमन्त्र का कोट्यंशादि पूर्वक विचार किया गया है। महती, बृहती, उक्ता एवं न्यासी इन चार प्रकार की मन्त्र विद्याओं पर चर्चा की गई है। सूरिमन्त्र के बीजपद कहे गये हैं तथा इस मन्त्र अधिकारी के लक्षण बताये गये हैं। उसके बाद सूरिमन्त्र की साधना में उपयोगी पाँच मुद्राओं पर विचार किया गया है इसमें इन पाँच मुद्राओं का स्वरूप और उनका फल कहा गया है। फिर विद्या प्रस्थान और पीठ का स्वरूप निर्दिष्ट किया गया है इसके साथ ही 'ऊँ' आदि तीन प्रकार के बीज एवं उनके प्रयोग पर विचार किया गया है तथा उनपचास पद वाले सूरिमन्त्र की सामान्य चर्चा की गई है। तत्पश्चात् क्रमशः प्रथम प्रस्थान (पीठ) की साधनाविधि, उसके लब्धिपद और उनका फल कहा गया है। फिर द्वितीय प्रस्थान की साधनाविधि, उसके लब्धि पद और उनका फल बताया गया है। उसी प्रकार तृतीय चतुर्थ-पंचम इन तीनों तदनन्तर प्रस्थानों की साधना विधि, उनके लब्धि पद और उनके फल का वर्णन किया गया है।
यह प्रतिपादित किया गया हैं कि पाँचवा मन्त्रराज नाम का प्रस्थान मेरु के समान है इस प्रसंग में मेरुओं की विविध संख्याएँ बतायी गई हैं। उसके बाद तेरह प्रकार के लब्धिपद वाले एवं सात मेरु से युक्त सूरिमन्त्र पर विचार किया गया है इसमें उल्लिखित लब्धिपद की दृष्टि से पाँचप्रस्थानों पर भी विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। तत्पश्चात् बत्तीस प्रकार के लब्धिपद वाले और चौबीस प्रकार के लब्धिपद वाले सूरिमन्त्र की चर्चा की गई हैं। इस सूरिमन्त्र की साधना विधि में छ: प्रस्थान कहे गये हैं। साथ ही इन छ:प्रस्थानों की आराधना विधि भी
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