Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/607
निमित्तपाहुड
इस ग्रन्थ द्वारा केवली, ज्योतिष और स्वप्न आदि निमित्तों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। आचार्य भद्रेश्वर ने अपनी 'कहावली' में और शीलांकसूरि ने अपनी 'सूत्रकृतांगटीका' में निमित्तपाहुड का उल्लेख किया है। पंचांगनयनविधि
इस ग्रन्थ के रचयिता पूर्वोक्त महिमोदय मुनि है। यह रचना वि.सं. १७२२ के आस-पास की है। इसका विषय ग्रन्थ के नाम से ही स्पष्ट है। इसमें अनेक सारणियाँ दी गई हैं- जिससे पंचांग के गणित में अच्छी सहायता मिलती है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। पंचांगदीपिका
इस ग्रन्थ की रचना किसी जैन मुनि ने की है। इसमें पंचांग बनाने की विधि बतायी गई है। यह कृति अप्रकाशित है। पंचांगतिथि-विवरण
यह कृति अज्ञातकर्तृक है। इस कृति पर करणशेखर द्वारा वृत्ति रची गई है। यह वृत्ति १६० श्लोक परिमाण है। इसमें ज्योतिष से सम्बन्धित पांच अंग १. तिथि, २. वार, ३. नक्षत्र, ४. करण, ५. योग का सम्यक विवेचन किया गया है। संभवतः इसमें इन पाँच अंगों को जानने एवं समझने की विधि दी गई होगी। हमें यह कृति प्राप्त नहीं हो सकी हैं। पंचांगतत्त्व
इस कृति के कर्ता का नाम और रचना समय अज्ञात है। इसमें पंचांग के तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण इन विषयों का निरूपण हैं। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। टीका - इस ग्रन्थ पर अभयदेवसूरि नामक किसी आचार्य ने ६००० श्लोक परिमाण टीका रची है। पंचांगपत्रविचार
इस ग्रन्थ के रचयिता जैन मुनि है। इस कृति के नाम से अवगत होता हैं कि इसमें ज्योतिष के मुख्य पांच अंग का विवेचन है। ग्रन्थ का रचना समय ज्ञात नहीं है। ग्रन्थ प्रकाशित भी नहीं हुआ है।
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