Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 665
________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/635 ११. पाँचदण्डक - इस द्वार में दैनिक क्रिया विधि में विशेष रूप से बोले जाने वाले शक्रस्तव, चैत्यस्तव, नामस्तव, श्रुतस्तव और सिद्धस्तव-इन पाँच सूत्रों के नाम दिये हैं। १२. बारहअधिकार - इस द्वार में देववन्दन विधि करते समय किन-किन को वन्दना की जाती है तत्सम्बन्धी बारह स्थान कहे गये हैं। १३. वन्दन करने योग्य - इसमें अरिहंत, मुनि, श्रुत एवं सिद्ध ये चार वन्दन करने योग्य कहे हैं। १४. स्मरण करने योग्य - इस द्वार में उपद्रव दूर करने वाले सम्यग्दृष्टि देवों को स्मरण करने योग्य कहा है। १५. चारनिक्षेप - इसमें नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ऐसे चार प्रकार के जिन बताये हैं। १६. चारस्तुति - इस द्वार में कहा है कि प्रथम स्तुति किसी भी तीर्थकर विशेष की होती है। दूसरी स्तुति सर्व तीर्थंकरों की होती है। तीसरी स्तुति श्रुत (आगम) की होती है और चौथी स्तुति सम्यक्त्वी देवी-देवता की होती है। १७. आठ निमित्त - इसमें प्रभु को वन्दन या उनका स्मरण कब करना चाहिए? उसके आठ कारण बताये गये हैं। १८. बारहहेतु - इस द्वार में देववन्दन करने के बारह प्रयोजन निर्दिष्ट किये हैं। १६. सोलहआगार - इसमें कायोत्सर्ग भंग न हो उसके लिए सोलह आगार (विशेष छूट) बताये गये हैं। २०. उन्नीसदोष - यह द्वार कायोत्सर्ग में लगने वाले उन्नीस दोषों का वर्णन करता है। २१. कायोत्सर्गपरिमाण - इस द्वार लोगस्स के बराबर पच्चीस श्वासोश्वास परिमाण का और नवकार बराबर आठ श्वासोश्वास परिमाण का कायोत्सर्ग बताया गया है। २२. स्तवन सम्बन्धी विचार- इसमें यह कहा गया है कि स्तवन गंभीर, मधुर एवं अर्थयुक्त होने चाहिये। २३. सात बार चैत्यवन्दन- इस द्वार में निर्देश है कि साधु और गृहस्थ दोनों को दिनभर में सात बार चैत्यवन्दन विधि करनी चाहिये। साथ ही वह विधि कब-कब करनी चाहिए ? यह भी बताया गया है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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