Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 687
________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/657 सम्पन्न कर प्रवेश करने की विधि १२. पौषध ग्रहण विधि १३. सामायिक-ग्रहण विधि १४. प्रतिलेखन विधि १५. मध्याह्कालीन देववंदन विधि १६. रात्रिक मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन विधि १७. सन्ध्याकालीन प्रतिलेखन विधि १८. स्थंडिल प्रतिलेखन विधि १६. दैवसिक मुखवस्त्रिका विधि २०. वाचना विधि- इसमें नमस्कारमंत्र की दो वाचना, इरियावहिसूत्र की दो वाचना, णमुत्थुणसूत्र की तीन वाचना, चैत्यस्तवसूत्र की एक वाचना, नामस्तवसूत्र की तीन वाचना, श्रुतस्तवसूत्र की वाचना एवं सिद्धस्तवसूत्र की एक वाचना का वर्णन है। २१. कायोत्सर्ग करने की विधि २२. खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन करने की विधि २३. नवकारवाली गिनने की विधि २४. उपधानवाहियों के लिए प्रतिदिन करने योग्य आवश्यक क्रियाओं की सूचनाएँ २५. उपधान में आलोचना आने के कारण २६. उपधान में दिन निरस्त होने के कारण २७. मालारोपण विधि - इसके अन्तर्गत समुदेश विधि, अनुज्ञाविधि, मालाग्राही को उपद्देश विधि, माल पहनाने की विधि, माला पहनाने योग्य माला भूमि पर गिर जाये तो पुनः वासचूर्ण द्वार अभिमन्त्रित करने की विधि का वर्णन है। २८. उपधानसंबंधी विशेष जानकारी २६. उपधानवाहियों की सामान्य आलोचना विधि ३०. पाली पलटने (लगातार दो दिन नीवि तप करना या तप क्रम में परिवर्तन करने की विधि इत्यादि उल्लिखित हैं। इसके अन्तर्गत उपधान यंत्र एवं उपधान सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी दिये गये हैं। (२) प्रव्रज्या ग्रहण विधि (३) उपस्थापना (बडी दीक्षा) विधि (४) बारहव्रत आरोपणविधि (५) ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण करने की विधि (६) पैंतालीस आगम-तप, चौदहपूर्व तप आदि की विधियाँ (७) मुद्राविधि। स्पष्टतः यह कृति संक्षेप में उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करती है। विवेक-विलास यह ग्रन्थ' वायड़गच्छीय जीवदेवसूरि के शिष्य जिनदत्तसूरि द्वारा रचित संस्कृत पद्य में है। इसका रचनाकाल १२ वीं शती का उत्तरार्ध है। यह रचना मुख्यतः श्रावक अधिकार से सम्बन्धित है। इसमें श्रावक के आध्यात्मिक, धार्मिक व्यापारिक, वैवाहिक, राजनैतिक, व्यावहारिक आदि सभी कर्तव्यों का विवेचन हुआ ' यह ग्रन्थ वि.सं. १६७६ में सरस्वती ग्रन्थमाला कार्यालय बेलनगंज, आगरा से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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