Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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644 / विविध विषय सम्बन्धी साहित्य
द्वितीय अधिकार
इस दूसरे अधिकार में २१ से ७० तक श्लोक हैं। उनमें विशेष गृहस्थधर्म की विधियों कही गई हैं वे निम्न हैं.
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१८.
१. सम्यक्त्व प्राप्त करने की विधि - इसके अन्तर्गत पाँच प्रकार का सम्यक्त्व एवं समकित के ६८ प्रकारों का निरूपण है । २. समकित हुआ या नहीं? यह जानने की विधि - इसमें शम - संवेगादि पाँच गुणों का वर्णन हुआ है । ३. समकित तत्त्व को पुष्ट करने की विधि इसमें समकित की महिमा एवं समकित का फल बताया है । ४. धर्म (व्रत) को ग्रहण करने की विधि - इसमें बारह व्रतों का स्वरूप बताया गया है । ५. व्रत संबंधी चिन्तन विधि- इसमें बारह व्रतों के एक सौ चौबीस अतिचार कहे हैं । ६. सात क्षेत्र में करने योग्य कर्त्तव्य । ७. श्रावक की दिनकृत्य विधि । गृह मंदिर में जिनपूजा करने की विधि। ६. श्री संघ के जिनमन्दिर में पूजा करने की विधि । १०. बृहत् देववंदन विधि । ११. जिनमंदिर तथा धार्मिक द्रव्य के विषय में श्रावक के विशेष कर्त्तव्यादि का विवेचन । १२. गुरुवंदन विधि - इसमें वन्दन के तीन प्रकार, वंदन के छः स्थान, वन्दना के पच्चीस आवश्यक, वन्दना के बत्तीस दोष, वन्दना के आठ कारण, गुरु की तैतीस आशातनाएँ आदि की चर्चा है। १३. प्रत्याख्यानग्रहण विधि - इसमें प्रत्याख्यान के दस प्रकार, प्रत्याख्यान के काल सम्बन्धी दस प्रकार, प्रत्याख्यान के भेद, प्रत्याख्यान के स्थान, प्रत्याख्यान के आगार आदि का वर्णन है । १४. व्यापार करने की विधि । १५. औचित्य धर्म की विधि - इसमें १. माता २ पिता, ३ पत्नि ४ भ्राता ५. पुत्र ६. स्वजन सम्बन्धी ७. धर्माचार्य ८. नगरजन है । ६. अन्य धर्मीजन इन नौ लोगों के साथ रखने योग्य औचित्य का प्रतिपादन १७. मध्याह्नकाल में करने योग्य विधि - इसमें सुपात्रदान विधि एवं भोजन करने की रीति ये दो बातें कही है। १८. सायंकालीन जिनपूजन आदि करने की विधि, १६. प्रतिक्रमणविधि - इसके अन्तर्गत रात्रिकदैवसिक-पाक्षिक- चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण विधि, प्रतिक्रमण का काल, आवश्यक सूत्रों का अर्थ, आदि प्रतिपादित हुये हैं । २०. रात्रिकालीन कर्त्तव्य । २१. श्रावक सम्बन्धी कर्त्तव्य। २२. श्रावक के चौमासी सम्बन्धी कर्त्तव्य । २३. श्रावक के वार्षिक सम्बन्धी कर्त्तव्य । २४. श्रावक के जन्म सम्बन्धी कर्त्तव्य । २५. ग्यारह उपासक - प्रतिमा ग्रहण करने की विधि एवं उनका स्वरूप ।
तृतीय अधिकार प्रस्तुत अधिकार में ७१ से १५३ तक श्लोक दिये गये हैं। उनमें सापेक्ष श्रमणधर्म सम्बन्धी कृत्यों पर विचार किया गया हैं वे कृत्य ये हैं
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१. दीक्षा की योग्यता के गुण, दीक्षा का स्वरूप एवं दीक्षा ग्रहण विधि, २. शास्त्र अध्ययन विधि, ३. दिनचर्या के सात द्वारादि का वर्णन, ४. प्रतिलेखना का स्वरूप एवं विधि, ५. स्वाध्याय का स्वरूप एवं विधि, ६. भिक्षाचर्या विधि, ७. वसति,
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