Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 680
________________ 650/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य उपवास आदि दस प्रकार के काल सम्बन्धी प्रत्याख्यानों का भी निरूपण हुआ है। द्वितीय द्वार में चार प्रकार की उच्चारविधि का निर्देश है। इसके अनन्तर नवकारसी-पोरूसी आदि प्रत्याख्यानों में किसमें कितने उच्चार पद होते हैं? यह भी बताया गया है। तृतीय द्वार में चार प्रकार के आहार का स्वरूप बताया गया है। चतुर्थ द्वार में नवकारसी, पोरिसी, एकासना बीयासना आदि दस प्रकार के प्रत्याख्यान सम्बन्धी बाईस आगारों का विवेचन हुआ है। पंचम-षष्टम द्वार में दस प्रकार की विगय और तीस प्रकार के नीवियाता (निर्विकृतिक) का उल्लेख हुआ है। यहाँ ज्ञातव्य है कि छ: मूल विकृति के ही तीस निर्विकृतिक होते हैं। सप्तम द्वार में प्रत्याख्यान विधि के एक सौ सैंतालीस विकल्प (भांगा) कहे गये हैं। अष्टम द्वार में प्रत्याख्यान की छः शुद्धियाँ बतायी गयी रे नवम द्वार में विधिपूर्वक प्रत्याख्यान ग्रहण करने से होने वाले इहलौकिक और परलौकिक ऐसे दो प्रकार के फल बताये हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि यह कृति प्रत्याख्यान संबंधी अन्य कृतियों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसमें प्रत्याख्यान विषयक प्रायः समग्र विवरण उपलब्ध है। पर्युषणाविचार ___यह हर्षसेनगणि के शिष्य हर्षभूषण' की रचना है।' इसे पर्युषणास्थिति एवं वर्तितभाद्रपद पर्युषणाविचार भी कहते हैं। यह वि.सं. १४८६ की रचना है और इसमें २५८ पद्य हैं। इसमें पर्युषणा विधान के विषय में विचार किया गया है। प्रत्याख्यानसिद्धि यह अज्ञातकर्तृक रचना है। संभवतः इसमें प्रत्याख्यान विधान संबंधी चर्चा होनी चाहिए। हमें यह कृति प्राप्त नहीं हुई है। टीकाएँ - सोमसुन्दरसूरि के शिष्य मुनि जयचन्द्र . .. इस पर ७०० श्लोक-परिमाण एक विवरण लिखा है। जिनप्रभसूरि ने भा एक विवरण लिखा है। इसके अलावा किसी ने १५०० श्लोक-परिमाण टीका भी रची है। . ' जिनरत्नकोश - पृ. २४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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