Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
636/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य
२४. दस आशातना - इस अन्तिम द्वार में जिन मन्दिर में लगने वाली दस आशातनाएँ उल्लेखित की है।'
इस प्रकार पूर्वोक्त २४ द्वारों के कुल २०७४ प्रकार होते है। इस कृति का अध्ययन करने से ज्ञात होता हैं कि इसमें जिनमन्दिर सम्बन्धी आवश्यक एवं अनिवार्य सर्व प्रकार की विषय वस्तु का विधिवत् और भेद-प्रभेद पूर्वक प्रतिपादन हुआ है। नित्याराधकों के लिए यह रचना अति उपयोग है।
ग्रन्थकार देवेन्द्रसूरि ने कर्मविपाक आदि पाँच नव्य कर्मग्रन्थ एवं उनकी टीका, गुरुवंदणभास, पच्चक्खाणभास, दाणाइकुलक, सुंदसणाचरिय तथा सढ़दिणकिच्च और उनकी टीकाएँ आदि भी रची हैं। वे व्याख्यान कला में सिद्धहस्त थे। जिनभारतीसंग्रह
यह एक संकलित कृति है। ब्र. प्रदीप शास्त्री ने इस पुस्तक का संकलन किया है। इस कृति में पूजा, स्तोत्र एवं स्त्रोत से सम्बन्धित कुछ हिन्दी पद्यों का संकलन है। मूलतः यह संग्रहित ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा के दैनिक विधि-विधानों एवं पूजा विधानों से सम्बन्धित है। उन परम्परानुयायियों के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुतः 'जिनभारतीसंग्रह' नामक यह ग्रन्थ आठ खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में नित्यक्रिया सम्बन्धी विधि-विधान कहे गये हैं। द्वितीय खण्ड में सामान्यतया सभी प्रकार की पूजाओं के विधि-विधान दिये गये है। तृतीय खण्ड में चौबीस तीर्थंकरों की पूजा करने के विधि-विधान वर्णित है। चतुर्थ खण्ड में विशेष पर्व आदि में करने योग्य पूजा विधियाँ उल्लिखित हैं। पंचम खण्ड में कुछ तीर्थकरों के चालीसा पाठ दिये गये है। षष्टम खण्ड में नित्य स्वाध्याय करने योग्य
' यह गुजराती अनुवादों के साथ अनेक स्थानों से प्रकाशित हुआ है। ‘संघाचारविधि' नामक टीका के साथ 'श्रीजिनशासन आराधना ट्रस्ट, भूलेश्वर मुंबई' ने वि.सं. २०४५ में प्रकाशित किया है। इसका प्रथम संस्करण सन् १९३८ में 'ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था' से प्रकाशित हुआ है। इसके सम्पादक श्री आनन्दसागरसूरि ने प्रारम्भ में मूलकृति देकर, बाद में 'संघाचारविधि' नाम की टीका का संक्षिप्त एवं विस्तृत विषयानुक्रम संस्कृत में दिया है।
इसके बाद कथाओं की सूची, स्तुति-स्थान, स्तुति-संग्रह, देशना-स्थान, देशना-संग्रह, सूक्तियों के प्रतीक, साक्षी रुप ग्रन्थों की नामावली, साक्षी-श्लोकों के प्रतीक और विस्तृत उपक्रम (प्रस्तावना) है। २ जिनभारतीसंग्रह - सं. प्रदीपशास्त्री, प्र. श्रीवर्णीदिगम्बर जैन गुरुकुल पिसनहारी मढ़िया, जबलपुर (म.प्र.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org