Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 619
मेवाड़ के किनारे पर आया हुआ राणकपुरतीर्थ का धरणीविहार नामक चौमुखजी का मन्दिर और सौराष्ट्र में सोमपुर ( प्रभास पाटण) में बनाया हुआ सोमनाथ महादेव का प्राचीन प्रासाद आदि भारत की स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
इन प्रासादों (मन्दिरों) की अद्भुत कारीगरी को देखने के लिए पाश्चात्य संस्कृति के इंजीनियर, भारत देश के गवर्नर और वायचांसलर भी आते हैं इतना ही नहीं उन कारीगरी के फोटू (चित्र) भी लेकर जाते हैं
वस्तुतः प्रस्तुत कृति में शिल्परचना की सभी विधाओं का निरूपण किया गया है। यह ग्रन्थ चौदह रत्नों (विभागों) में विभक्त है। इस ग्रन्थ की विषयवस्तु का संक्षिप्त वर्णन अधोलिखित है
पहला रत्न इस विभाग में गजविधान, अंगुलादि से पृथ्वी का परिमाण, आय निकालने की विधि, मनुष्य का आय लाने की विधि, नक्षत्र फल निकालने की विधि, गणविचार, अधोमुख आदि नक्षत्रों की संज्ञा, तारा जानने की विधि |
राशिविचार, अंशादि जानने की विधि और लग्न - तिथि - वार- करण-योग-वर्गतत्त्व आदि का विचार किया गया है। साथ ही इसमें सर्पाकर नाड़ीचक्र का कोष्ठक, इष्ट-अनिष्ट देखने का कोष्ठक, तिथि-योग सम्बन्धी कोष्ठक, वर्ग लाने का कोष्ठक, नक्षत्र, गण, चंद्रादि देखने के कोष्ठक भी उल्लिखित हैं।
दूसरा रत्न यह विभाग प्रासादोत्पत्ति, प्रासादरचना, भूमिशोधन, कूर्मशिला, जगती, पीठ आदि से सम्बन्धित है। इसमें देशानुसार प्रासाद का विधान, देशानुसार प्रासादों की उत्पत्ति, राजस, तामस और सात्त्विक प्रासाद, प्रासाद निर्माण के योग्य स्थान, नगराभिमुख प्रासाद विधान, यथाशक्ति प्रासाद विधान, मन्दिर निर्माण के लिए शुभमुहूर्त्त देखने का विधान, भूमिशोधन विधि, शल्य शोधन विधि, प्रासाद का माप लेने की विधि, कूर्मशिला स्थापन विधि, प्रथम शिला स्थापन विधि, कूर्मशिला सम्बन्धी विशेष विचार, प्रासाद की जगती का विधान, जगती की ऊँचाई का परिमाण, प्रासाद के पीठमान का विधान, इत्यादि विषयों पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है। साथ ही नागवास्तुचक्र, कूर्मशिला, जगती, पीठ, महापीठ के चित्र दिये गये हैं।
तीसरा रत्न इस विभाग में मंडोवर का विस्तृत विवेचन किया गया है इसके साथ ही प्रासाद के गंभारे के पाँच प्रकार, प्रासाद की भित्ति की मोटाई का परिमाण, प्रासाद के लिए द्वार बनाने की दिशा, द्वारशाखा विधान, दीपक रखने के लिए गोखला विधान इत्यादि पर विचार किया गया है। मंडोवर एवं द्वार शाखा संबंधी कई चित्र भी दिये गये हैं।
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