Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/617
श्वानशकुनाध्याय
यह कृति संस्कृत भाषा के २२ पद्यों में निबद्ध ५ पत्रों में है। इसके कर्ता अज्ञात है। इस ग्रन्थ में कुत्ते की हलन-चलन और चेष्टाओं के आधार पर घर से निकलते हुए मनुष्य को प्राप्त होने वाले शुभाशुभ फलों का निर्देश किया गया है। शकुनरत्नाबलि-कथाकोश
इस ग्रन्थ की रचना आचार्य अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि ने की है। शकुनशास्त्र
__ इसका दूसरा नाम 'शकुनसारोद्धार' है। इसके रचयिता आचार्य माणिक्यसरि है। यह रचना वि.सं. १३३८ की हैं। इस ग्रन्थ में शकुन विधि सम्बन्धी ग्यारह विषयों का निरूपण हुआ है वे विषय निम्न हैं - १. दिक्स्थान, २. ग्राम्यनिमित्त, ३. तित्तिरि, ४. दुर्गा, ५. लद्वागृहोलिकाक्षुत, ६. वृक, ७. रात्रेय, ८. हरिण, ६. भषण, १०. मिश्र और ११. संग्रह।
ग्रंथकर्ता ने शकुनविषयक अनेक ग्रन्थों के आधार पर इस ग्रन्थ की रचना की है। सउणदार (शकुनद्वार)
यह ग्रन्थ प्राकृत में है।' यह अपूर्ण है। इसमें कर्ता का नाम नहीं दिया गया है। इस कृति के नाम से इसमें शकुन विधान का वर्णन होना चाहिए।
शकुनविचार
यह कृति ३ पत्रों में पाटन के जैन भंडार में है। इसक भाषा अपभ्रंश है। इसमें किसी पशु के दाहिनी या बायीं ओर होकर गुजरने के शुभाशुभ फल के विषय में विचार किया गया है। यह अज्ञातकर्तृक रचना है। शकुनरहस्य
__ इस ग्रन्थ की रचना वायडगच्छीय जिनदत्तसरि ने की है। ये आचार्य अमरचन्द्रसूरि के शिष्य थे। यह पद्यात्मक कृति नौ प्रस्तावों में विभक्त है। इसमें
' यह प्रति पाटन के भंडार में हैं। • यह रचना शकुनशास्त्र के नाम से, सानुवाद सन् १८६६ में जामनगर से प्रकाशित हुई है। इसका अनुवाद पं. हीरालाल हंसराज ने किया है।
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