Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 646
________________ 616/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य चक्र-यन्त्र-चित्र-संबंधीविवरण - प्रथम प्रकरण में १.दिशासाधन यन्त्र, २. राहुमुख ज्ञान यन्त्र, ३. गृहप्रवेश यंत्र, ४. गृहराशि यंत्र, ५. शेषनाग चक्र, ६. ४६ पद का, ६४ पद का, ८१ पद का, १०० पद का वास्तुपुरुष चक्र आदि दिये गये हैं। इसकी प्रकाशित प्रति के दूसरे प्रकरण में १. पद्मासनस्थ श्वेताम्बर जिनमूर्ति, २. पद्मासनस्थ दिगम्बर जिनमूर्ति, ३. कायोत्सर्गस्थ श्वेताम्बर जिनमूर्ति, ४. कायोत्सर्गस्थ दिगम्बर जिनमूर्ति, ५. परिकर सहित मूर्ति, ६. परिकर एवं तोरण युक्त मूर्ति, ७. समवसरणस्थ मूर्ति, ८. अर्ध पद्मासनस्थ मूर्ति, ६. चतुर्मुख वाली मूर्ति इत्यादि के चित्र दिये गये हैं। तीसरे प्रकरण में मंदिर निर्माण संबंधी निम्नचित्र विवरण सहित दिये गये हैं - १. कूर्मशिला यन्त्र, २. साधारण पीठ, ३. मंडोवर पीठ, ४. शिखर, ५. आमलसार कलश, ६. ध्वजादंड मान, ७. मंदिर द्वार शाखा, ८. देवों की दृष्टि स्थान का द्वार, ६. जगती के उदय का स्वरूप, १०. मंदिर का तलभाग, ११. मंदिर के उदय स्वरूप इतना ही नहीं प्रस्तुत ग्रन्थ की प्रामाणिकता को स्पष्ट करने के लिए अन्यान्य ग्रन्थों के उद्धरण भी लिये गये हैं। इस ग्रन्थ का परिशिष्ट भाग भी अति उपयोगी सामग्री को प्रस्तुत करता है। वह चार भागों में विभक्त है। परिशिष्ट के प्रथम भाग में 'वज्रलेप' का स्वरूप एवं उसकी उपयोगिता को बताया गया है। परिशिष्ट के दूसरे भाग में श्वेताम्बर परम्परानुसार चौबीस तीर्थकर उनकी यक्ष-यक्षिणीयाँ तथा सोलह विद्यादेवीयाँ, नवग्रह और दशदिक्पाल आदि का सचित्र वर्णन किया गया है। परिशिष्ट के तीसरे विभाग में दिगम्बर परम्परानुसार चौबीस तीर्थंकरों के चिन्ह एवं उनके यक्ष-यक्षिणीयों का शासनदेव-शासनदेवीयों का सचित्र प्रतिपादन किया गया है। परिशिष्ट के चौथे भाग में प्रतिष्ठासंबंधी मुहूर्त की सविस्तार विवेचना की गई है। इस कृति के अन्त में स्वरचित रत्नपरीक्षा नामक प्रकरण दिया गया है। उसमें हीरा, पन्ना, माणक, मोती, लहसनीया, प्रवाल, पुखराज आदि रत्नों की जातियों की उत्पत्ति, सोना, चांदी, पीतल, तांबा, जस्ता, कलई आदि धातु के जातियों की पारा, सिंदुर, दक्षिणावर्त शंख, रुद्राक्ष, शालिग्राम, कपूर, कस्तुरी, अंबर, अगरु, चंदन और कुंकुम आदि की उत्पत्ति एवं उनकी परीक्षा और उनके गुणों का वर्णन किया गया है। विवाहपडल (विवाहपटल) विवाह-पडल के कर्ता अज्ञात हैं। यह प्राकृत में रचित एक ज्योतिष विषयक ग्रन्थ है, जो विवाह के समय काम में आता है। इसका उल्लेख 'निशीथविशेषचूर्णि' में मिलता है।' 'उद्धृत- जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भा. ५, पृ. १६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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