Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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ज्योतिष विषयक अनेक बिन्दूओं पर प्रकाश डाला गया है। टीकाएँ - इस ग्रन्थ पर कुछ टीकाएँ भी निर्मित हुई है।
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दूसरी टीका मुनि हेमतिलकजी ने रची है। इसका समय अज्ञात है।
तीसरी टीका जैनेतर दैवज्ञ शिरोमणि ने रची है। इसका समय ज्ञात नहीं है।
• चौथी टीका किसी अज्ञात जैन मुनि ने रची है । '
मण्डलप्रकरण
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 611
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एक टीका आचार्य सिंहतिलकसूरि ने वि.सं. १३२६ में १७०० श्लोक - परिमाण रची है। ये आचार्य ज्योतिष शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान् थे। इन्होंने श्रीपति के ‘गणितिलक' पर भी एक महत्वपूर्ण टीका रची है।
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इसके कर्ता आचार्य विजयसेनसूरि के शिष्य मुनि विनयकुशल है। यह ग्रन्थ प्राकृत के ६६ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचनाकाल वि.सं. १६५२ है । यह कोई नवीन रचना नहीं हैं, क्योंकि ग्रन्थकार ने यह निर्देश किया हैं कि आचार्य मुनिचन्द्रसूरि नें 'मण्डल कुलक' रचा है, उस ग्रन्थ को आधारभूत बनाकर एवं 'जीवाजीवाभिगम' की कई गाथाएँ उद्धृत कर इस प्रकरण की रचना की गई है। इसमें ज्योतिष के खगोल विषय पर प्रकाश डाला गया है। यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं है।
टीका - इस ग्रन्थ पर मुनि विनयकुशल के द्वारा स्वोपज्ञ टीका रची गई है। इसकी रचना करीब वि.सं. १६५२ में हुई है। यह १२३१ ग्रन्थाग्र परिमाण है। यह टीका अप्रकाशित है। मानसागरीपद्धति
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प्रस्तुत कृति के नाम से ज्ञात होता है कि इसके कर्त्ता मानसागरमुनि होने चाहिए। इस नाम के अनेक मुनि हो चुके हैं इसलिए इसके कर्त्ता कौन हो सकते हैं, इसका निर्णय करना संभव नहीं है। यह ग्रन्थ पद्यात्मक है। इसमें फलादेश विधि का वर्णन है। इसके प्रारंभ में आदिनाथ आदि तीर्थंकरों और नवग्रहों की स्तुति करके जन्मपत्री बनाने की विधि कही गई है। आगे संवत्सर के ६० नाम, संवत्सर, युग, ऋतु, मास, पक्ष, तिथि, वार और जन्मलग्न - राशि आदि
'उद्धृत- जैन साहित्य का बृहद् इतिहास - भा. ५, पृ. १७०
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इसकी प्रति ला.द.भा. संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद में है।
३ यह ग्रन्थ वेंकटश्वर प्रेस, बंबई से वि.सं. १६६१ में प्रकाशित हुआ
है।
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