Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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560/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
लब्धिपदफलप्रकाशकःकल्पः
यह कृति अज्ञातसूरि की है। यह संस्कृत गद्य में रचित अत्यन्त लघु आकार वाली है। प्रस्तुत कृति का ध्येय सूरिमन्त्र के पदों का माहात्म्य प्रदर्शित करना है। इस कृति में दो प्रकार की आम्नाय विधि कही गई हैं। प्रथम आम्नाय विधि देह सम्बन्धी रोगों के निवारण एवं विशिष्ट विद्याओं तथा शक्तियों के अर्जन से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत पैंतालीस प्रकार के लब्धिपद बताये गये हैं। इसके साथ ही इसमें प्रत्येक लब्धिपद का फल भी बताया गया है अर्थात् कौनसा लब्धिपद किस रोग का नाश करता है, किस शक्ति को प्रगट करता है और कौनसी विद्या प्रदान करता है इत्यादि। इन लब्धियों को सिद्ध करने के लिए १०८ बार जाप करना चाहिए, ऐसा निर्देश किया गया है। द्वितीय आम्नायविधि फल विशेष का प्रकाशन करने वाली है। इसमें मुख्य रूप से लब्धिपदों की साधना विधि कही गई हैं। लब्धिफलप्रकाशककल्प
यह कृति किसी अज्ञात आचार्य द्वारा रचित है इसमें विभिन्न लब्धि पदों के जप से किस-किस रोग का उपशमन होता है एवं विशिष्ट प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती है, इसका विवरण दिया गया है। वर्धमानविद्याकल्प
इसके कर्ता गणित-तिलक के वृत्तिकार सिंहतिलकसरि है। ये यशोदेवसूरि के प्रशिष्य एवं विबुधचन्द्र के शिष्य हैं। यह रचना सन् १२६६ की है। यह रचना अनेक अधिकारों में विभक्त है। इसके प्रारम्भ के तीन अधिकारों में अनुक्रम से ८६, ७७ और ३६ पद्य हैं। इसमें आचार्य, उपाध्याय, वाचनाचार्य तथा आचार्य कल्प मुनि के साधना योग्य विद्याओं का उल्लेख हैं।' वर्धमानविद्याकल्प
__इस नाम की एक कृति यशोदेव ने भी लिखी है तथा एक कृति अज्ञातकर्तृक है। एक कृति में ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों से संबंधित चतुर्विंशति विद्याओं का उल्लेख है।
' यह कृति सिंहतिलकसूरि की वृत्ति के साथ सम्पादित होकर 'गायकवाड ओरिएण्टल सिरीज' से सन् १६३७ में प्रकाशित हुई है।
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