Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 567
सूरिमुख्यमन्त्रकल्प
यह कृति अचलगच्छीय मेरुतुंगसूरि द्वारा ई. यह मुख्यतः संस्कृत प्राकृत मिश्रित पद्य में निबद्ध है। है। इस कृति के नाम से सुज्ञात होता हैं कि इसमें विशिष्ट प्रकार से दी गई है।
सन् १८८६ में निर्मित है। यह ५५८ श्लोक परिमाण सूरिमन्त्र की साधना विधि
इस ग्रन्थ के प्रारंभ में मंगलाचरण एवं ग्रन्थ नियोजन रूप चार श्लोक दिये गये हैं। उनमें श्री पार्श्वप्रभु एवं गौतमगुरु को नमस्कार करके गुरोपदिष्ट सूरिमन्त्र का विवेचन करने की इच्छा प्रगट की गई है। इसके साथ ही अचलगच्छीय नाम से विख्यात यह विधिपक्ष चक्रेश्वरी देवी के सान्निध्य के द्वारा इस साधना में निरन्तर आगे बढ़ता रहे यह भावना की गई है। यह सूरिमन्त्र आर्यरक्षितसूरि के द्वारा पूर्वकाल में प्रकाशित किया गया था। उसको ही स्व सम्प्रदाय के अनुसार इस कृति में गुम्फित करने की बात कही गई है । अन्त में प्रशस्ति रूप दो श्लोक कहे गये हैं। उनमें ग्रन्थकर्त्ता का नामोल्लेख किया गया है। साथ ही ग्रन्थ का श्लोक परिमाण और ग्रन्थ रचना का प्रयोजन बताया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ की विषयवस्तु विस्तृत है लेकिन हम केवल उन विषयों के नामों का ही उल्लेख करेंगे चूंकि तत्सम्बन्धी प्रायः सभी विषयों का सामान्य वर्णन सूरिमन्त्र की अन्य कृतियों में कर चुके हैं। प्रस्तुत कृति में विवेचित छब्बीस विषयों के नामों के निर्देश इस प्रकार हैं।
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१. पंचपीठ का स्वरूप २. उपाध्यायपदस्थापना के अवसर पर दिया जाने वाला वर्धमान विद्या मन्त्र ३. स्थविरपदस्थापना के समय सुनाया जाने वाला मन्त्र ४. प्रवर्त्तकपद स्थापना के समय सुनाया जाने वाला मन्त्र ५. गणावच्छेदकपदस्थापना के समय दिया जाने वाला मन्त्र ६. वाचनाचार्य और प्रवर्त्तिनीपदस्थापना के समय सुनाया जाने वाला मन्त्र, ७. पण्डितमिश्रमन्त्र, ८. ऋषभ विद्या, ६. सूरिमन्त्र की साधनाविधि, १०. प्रथम पीठ की साधनाविधि ११. द्वितीय पीठ की साधना विधि, १२. तृतीय पीठ की साधना विधि १३. चतुर्थ पीठ की साधनाविधि, १४. पंचम पीठ की साधनाविधि, १५. सूरिमन्त्र के स्मरण का फल, १६. सूरिमन्त्र पटालेखन विधि १७. सूरिमन्त्र ध्यान करने की विधि और सूरिमन्त्र की जाप विधि । १८. आठ प्रकार की विद्याएँ और उनका फल, १६. सूरिमन्त्र स्मरण विधि, २०. सूरिमन्त्र अधिष्ठायक स्तुति, २१. अक्षादि विचार २२ स्तम्भनादि आठ प्रकार की क्रियाओं का विचार, २३. चार प्रकार के मन्त्र और मन्त्र स्मरण की रीति, २४. मुद्राओं का वर्णन २५. पंचाशत लब्धिपदों का वर्णन और २७ विद्यामन्त्र का लक्षण । यह ग्रन्थ ‘सूरिमन्त्रकल्पसमुच्चय' के साथ प्रकाशित है।
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