Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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594 / ज्योतिष-निमित्त शकुन सम्बन्धी साहित्य
'गणिविद्या' नामक यह कृति प्राकृत पद्य में निबद्ध है और इसमें कुल ८६ गाथाएँ हैं।' यह कृति निमित्त शास्त्र विषयक विधि-विधानों से सम्बन्धित है। प्रस्तुत ग्रन्थ के मंगलाचरण में स्पष्ट रूप से निर्देश किया गया है कि जिनभाषित प्रवचन शास्त्र में जिस प्रकार से ग्रह, नक्षत्र, मुहूर्त, करण आदि की बलाबल विधि कही गयी है तदनुसार इनका वर्णन करने की प्रतिज्ञा अभिव्यक्त है । ग्रन्थकार ने अन्त में भी 'अनुयोग के ज्ञायक सुविहितों के द्वारा बलाबल विधि कही गयी है' ऐसा उल्लेख किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह कृति मूलतः विधि - विधानपरक है।
दूसरी बात इससे यह भी फलित होती है, कि इस ग्रन्थ के कर्त्ता जैन आगम साहित्य के अध्येता है और उसी ज्ञान के आधार पर उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना की है। प्रतिज्ञा वाक्य से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत कृति मात्र संकलन नहीं होकर किसी व्यक्ति विशेष की रचना है किन्तु सम्पूर्ण ग्रन्थ में कहीं भी ग्रन्थकर्त्ता ने अपना नामोल्लेख नहीं किया है। फिर भी इतना अवश्य कह सकते हैं कि यह ग्रन्थ किसी बहुश्रुत स्थविर की ही रचना है। इस ग्रन्थ के रचनाकाल का स्पष्टीकरण नन्दीसूत्र आदि ग्रन्थों से होता है। नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र में इस ग्रन्थ का नामोल्लेख होना स्पष्ट रूप से यह बताता है कि इसकी रचना विक्रम की पाँचवी शताब्दी के पूर्व हुई है।
गणिविद्या की व्याख्या करते हुए लिखा गया है कि समस्त बाल-वृद्ध मुनियों का समूहगण कहलाता है और जो ऐसे गण का स्वामी हो, वह गणी कहलाता है। विद्या का अर्थ होता है ज्ञान अर्थात् जिस ग्रंथ में दीक्षा सामायिक चारित्र का आरोपण, महाव्रत स्थापन, श्रुत संबंधित उपदेश, समुद्देश, अनुज्ञापन, गण का आरोपण, निर्गम-प्रवेश आदि विधि-विधानों से सम्बन्धित तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्त्त एवं योग का निर्देश हो, वह गणिविद्या है।
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प्रस्तुत कृति में ज्योतिष को लेकर नौ विषयों का विधिवत् निरूपण हुआ
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(क) तन्दुलवैचारिक, गणिविद्या, मरणसमाधि, आतुरप्रत्याख्यान,
महाप्रत्याख्यान, संस्तारक, वीरस्तव, चतुःशरण, भक्तपरिज्ञा,
आदि ये मूल प्रकीर्णक 'पइण्णयसुत्ताई' भा. १ में प्रकाशित हैं। यह ग्रन्थ वि.सं. २०४० में 'श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई' से प्रकाशित हुआ है।
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(ख) १. चतुःशरण, २. आतुरप्रत्याख्यान, ३. महाप्रत्याख्यान, ४. भक्तपरिज्ञा, ५. तंदुलवैचारिक, ६. संस्तारक, ७. गच्छाचार, ८. गणिविद्या, ६. देवेन्द्रस्तव, १०. मरणसमाधि ये प्रकीर्णक संस्कृत छाया के साथ प्रताकार रूप में 'आगमोदय समिति' से प्रकाशित है।
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नन्दिसूत्र चूर्णि सहित - उद्धृत गणिविद्या प्रकीर्णक- हिन्दी अनुवाद, प्रस्तावना पृ. ६
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