Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 593
ग्रहमध्यम- साधन, २. ग्रहस्पटीकरण, ३. प्रश्नसाधक, ४. चन्द्र ग्रहण साधन, ५. सूर्यसाधक, ६ . त्रुटित होने से विषय ज्ञात नहीं होता है, ७. उदयास्त, ८. ग्रहयुद्धनक्षत्रसमागम, ६. पाताव्यय, १०. निमिशक (?) अन्त में प्रशस्ति विवरण है। ' करणकुतूहल- टीका
इसकी रचना वि. सं. १२४० के आसपास भास्कराचार्य ने की है। उनका यह ग्रन्थ करण विषयक है। इस ग्रन्थ में निम्नोक्त दस अधिकार हैं- १. मध्यम, २. स्पष्ट, ३. त्रिप्रश्न, ४. चन्द्र ग्रहण, ५. सूर्य ग्रहण, ६. उदयास्त, ७. श्रृंगोन्नति, ८. ग्रहयुति, ६. पात और १०. ग्रहणसंभव ।
इसमें कुल १३६ पद्य हैं। इस ग्रन्थ पर सोढल, नार्मदात्मज पद्मनाभ, शंकर कवि आदि की टीकाएँ हैं। इसके सिवाय अंचलगच्छीय मुनि हर्षरत्न के शिष्य मुनि सुमतिहर्ष मुनि ने वि. सं. १६७५ में 'गणककुमुदकौमदी' नामक टीका रची है। इस टीका का ग्रन्थाग्र १८५० श्लोक हैं।
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केवलज्ञानहोरा
इसके कर्त्ता दिगम्बर जैनाचार्य चन्द्रसेन है। इन्होंने यह रचना तीन-चार हजार श्लोक - परिमाण में रची है। इसमें होरा विषयक निरूपण हुआ है। इस ग्रन्थ के आरम्भ में होरा के कई अर्थ कहे हैं १. होरा यानि ढ़ाई घटी या एक घण्टा, २. एक राशि या लग्न का अर्धभाग, ३. जन्मकुण्डली, ४. जन्मकुण्डली के अनुसार भविष्य कहने की विद्या अर्थात् जन्मकुण्डली का फल बताने वाला शास्त्र । वस्तुतः यह शास्त्र लग्न के आधार पर शुभ-अशुभ फलों का निर्देश करता है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ में ज्योतिष विधि-विधान सम्बन्धी हेमप्रकरण, दाम्यप्रकरण, शिलाप्रकरण, मृत्तिकाप्रकरण, वृक्षप्रकरण, कर्पास - गुल्म-व - वल्काल- तृण-र - रोमचर्म-पटप्रकरण, संख्याप्रकरण, नष्टद्रव्यप्रकरण, निर्वाहप्रकरण, अपत्यप्रकरण, लाभालाभप्रकरण, स्वर- प्रकरण, स्वपनप्रकरण, वास्तुविद्याप्रकरण, भोजनप्रकरण, देहलोहदीक्षाप्रकरण, अंजनविद्या प्रकरण, विषविद्याप्रकरण आदि अनेक प्रकरण हैं। इस ज्योतिष पर कर्नाटक प्रदेश का काफी प्रभाव रहा हुआ है। स्पष्टीकरण के लिए बीच-बीच में कन्नड़ भाषा का भी प्रयोग किया गया है। यह कृति अप्रकाशित है।
गणिविज्जापइण्णयं - (गणिविद्याप्रकीर्णक)
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इसकी ७ पत्रों की अपूर्ण प्रति अनूप संस्कृत लायब्रेरी, बीकानेर में है ।
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यही टीका - ग्रन्थ मूल के साथ वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई से प्रकाशित हुआ है।
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