Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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574/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
पीठ के नाम बतलाये गये हैं। इनके नन्दीपदों की संख्या बतलायी गयी है साथ ही जिनप्रभसूरि को सोलह नन्दीपद ही अभिप्रेत हैं यह कहकर उन नन्दीपदों का उल्लेख किया गया है। यह कल्प मुख्यतः पांच प्रकरणों में विभक्त है उसकी विषयवस्तु संक्षेप में निम्न है - प्रथम विद्यापीठ की साधना विधि- इसमें विद्या पीठ की साधना के लिए सोलह नान्दीपद दिये गये हैं। साथ ही इन प्रत्येक नान्दी (मन्त्र) पदों को सिद्ध करने के लिए भिन्न-भिन्न वर्गों की ध्यान विधि बतायी गयी है। प्रत्येक की भिन्न-भिन्न मुद्राएँ और पृथक्-पृथक् जापसंख्याएँ वर्णित की गई हैं तथा प्रत्येक पदों का फलादेश भी कहा गया है। फलादेश के सम्बन्ध में यह निर्देश हैं कि प्रथम पीठ की साधना करने वाला साधक नगर का क्षोभ दूर कर सकता है, स्व-पर के स्वप्न का फलादेश करने में समर्थ बन सकता है, विष, रोग और उपद्रव को दूर करने में सफल हो सकता है तथा इन नन्दी पदों का एक सौ आठ दिन तक निरन्तर एक सौ आठ बार जाप करने से कवि ओर आगमवेत्ता भी बन जाता है। उसे आकाशगमन लब्धि भी सिद्ध हो जाती है। द्वितीय महाविद्यापीठ की साधना विधि- इसमें महविद्यापीठ की साधना विधि से सम्बन्धित नान्दीपद, ध्यानविधि, मुद्राप्रयोग, जापसंख्या आदि का वर्णन किया गया है। साथ ही यह कहा गया है कि इस पीट की साधना करने वाला तीनों लोकों में अप्रतिहत शासन करने वाला होता है। ततीय उपविद्यापीठ की साधना विधि- इसमें उपविद्यापीठ की साधना हेतु नान्दीपद, ध्यानविधि, मुद्राप्रयोग, जापसंख्या आदि का विवेचन किया गया है। इसके साथ ही इसमें यह कहा गया हैं कि इस पीठ के मन्त्रों का साधक दुष्ट देवियों का निराकरण कर सकता है, पर्वत-पत्तनादि के स्थानों पर चैत्य का आरोपण कर सकता है तथा अष्टांग निमित्त का ज्ञाता बन सकता है। चतुर्थ मंत्रपीठ की साधना विधि- इस चतुर्थपीठ की साधना के लिए भी पूर्वोक्त् क्रमपूर्वक नान्दीपदों, मुद्राओं, जापसंख्याओं आदि का वर्णन हुआ है। साथ ही इस पीठ की विशुद्ध साधना के द्वारा प्रारम्भ के तीन पीठ में कहे गये कार्य एवं लब्धियाँ अविलम्ब सिद्ध होती हैं यह कहा गया है।
इसके सिवाय वह साधक (आचार्य) वादी को पराजित करने में समर्थ बन जाता है, सिद्धांतों के अर्थों का प्रतिपादन करने में प्रवीण हो जाता है, उसमें शाप को निरस्त करने की सामर्थ्यता पैदा हो जाती है- इस प्रकार अनेक शक्तियों का स्वामी बन जाता है।
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