Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/531
ज्वालामालिनीकल्प
यह ग्रन्थ भैरवपद्मावतीकल्प के रचयिता आचार्य मल्लिषेण (लगभग ११ वीं शती) द्वारा रचा गया है और भैरवपद्मावतीकल्प में प्रकाशित भी है। इसमें ज्वाला- मालिनी की साधना विधि वर्णित है। ज्वालामालिनीकल्प
इस नाम की दूसरी तीन कृतियाँ हैं। इनमें से एक के कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है। दूसरी दो के कर्ता एलाचार्य एवं इन्द्रनन्दी है। ये दोनों सम्भवतः एक ही व्यक्ति होंगे, ऐसा जिनरत्नकोश (वि. १, पृ. १५१) में कहा गया है। किन्तु यह कृति इन्द्रनन्दी की है। इस कृति को ज्वालिनीकल्प, ज्वालिनीमत और ज्वालिनीमतवाद भी कहते हैं।
यह जैन परम्परा के मंत्र शास्त्र का एक प्रमुख ग्रन्थ माना गया है। इस ग्रन्थ की रचना १० वीं शती में हुई है। यह रचना ५०० श्लोक परिमाण की है। इसमें कुल १० परिच्छेद हैं - प्रथम परिच्छेद में साधक की योग्यता की चर्चा की गयी है। द्वितीय परिच्छेद में दिव्य अदिव्य ग्रहों की चर्चा है। तृतीय परिच्छेद में सकलीकरण, पल्लवों का वर्णन और साधना की सामान्य विधि बतलायी गयी है। चतुर्थ परिच्छेद में सामान्य मण्डल, सर्वतोभद्र मण्डल, समय मण्डल, सत्य मण्डल, आदि की चर्चा है। पंचम परिच्छेद में भूताकंपन तेल की निर्माण विधि का वर्णन है। षष्ठम परिच्छेद में सर्वरक्षा यन्त्र, ग्रहरक्षकयंत्र, पुत्रदायकयंत्र, वश्ययन्त्र, मोहनयन्त्र, स्त्री-आकर्षणयन्त्र, क्रोधस्तम्भन यन्त्र, सेनास्तम्भनयन्त्र, पुरुषवश्ययन्त्र, शाकिनी-भयहरणयन्त्र, सर्वविघ्नहरणयन्त्र, आदि की चर्चा की गई है। सप्तम परिच्छेद में विभिन्न प्रकार के वशीकरण कारक तिलक, अंजन, तेल आदि का एवं सन्तानदायक औषधियों का वर्णन किया गया है। अष्टम परिच्छेद में वसुधारा नामक देवी की स्नान विधि एवं पूजन विधि आदि बतलायी गयी है। नवम परिच्छेद में नीरांजन विधि का वर्णन किया गया हैं दशम परिच्छेद में शिष्य को विद्या देने की विधि, ज्वालामालिनी साधनाविधि और ज्वालामालिनी स्तोत्र तथा ब्राह्मी आदि अष्टदेवियों का पूजन, जप एवं हवन विधि, ज्वालामालिनी मालायन्त्र, वश्यमन्त्र एवं तंत्र आदि के उल्लेख हैं।
'ये इन्द्रनन्दी वप्पनन्दी के शिष्य थे। २ उद्धृत- जैनधर्म और तान्त्रिक साधना, पृ. ३५२
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