Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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546 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
करने के लिए औषधि एवं तिलक तैयार करने की विधि बतलायी गई है। इसके साथ ही इसमें राजा को वश करने के लिए काजल तैयार करने की विधि, अदृश्य होने की विधि, वीर्यस्तम्भन - तुला स्तम्भन के उपाय, स्त्री में द्राव उत्पन्न करने की विधि, वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए क्या करना चाहिए तथा रजस्वला होने एवं गर्भमुक्ति के लिए कौनसी औषधि काम में लेनी चाहिये इस प्रकार विविध बातें बतलायी गयी हैं ।
दशवाँ अधिकार ‘गारुड़तन्त्र' नाम का है। इस अधिकार में निम्नोक्त आठ विषयों को कहने की प्रतिज्ञा की गई है और उनका निर्वाह भी किया गया है- १. संग्रह - साँप द्वारा काटे गये व्यक्ति को पहचानने की विधि । २. अंगन्यास - शरीर के ऊपर मंत्राक्षर आलेखित करने की विधि । ३. रक्षाविधान - साँप द्वारा काटे गये व्यक्ति के संरक्षण की विधि । ४. स्तम्भनविधान- दंश आवेग रोकने की विधि । ५. स्तम्भन विधान - शरीर में चढ़ते हुए जहर को रोकने की विधि । ६. विषापहारजहर उतारने की विधि ७. सचोद्य - कपड़ा आदि आच्छादित करने का कौतुक ८. खटिकासर्प कौतुकविधान- खड़िया मिट्टी से आलेखित साँप के दाँत से कटवाने की विधि।
इस अधिकार में भेरण्डविद्या और नागाकर्षणमंत्र का भी उल्लेख है। इसके अतिरिक्त इसमें आठ प्रकार के नागों के बारे में भी जानकारी दी गई हैं। वह इस प्रकार है।
नाम अनन्त वासुकि तक्षक
कुल ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य वर्ण स्फटिक रक्त पीत विष अग्नि पृथ्वी वायु समुद्र समुद्र वायु
कर्कोटक पद्म महापद्म | शंखपाल कुलिक
वैश्य
क्षत्रिय ब्राह्मण
स्फटिक
अग्नि
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शुद्र
श्याम
शुद्र
श्याम पीत
जय और विजय जाति के नाग तथा देवकुल के आशीविषवाले नाग जमीन पर न रहने से उनके विषय में इतना ही उल्लेख किया गया है। इसमें नाग की फेन, गति एवं दृष्टि स्तम्भन के बारे में तथा नाग को घड़े में कैसे उतारना इसके बारे में भी जानकारियाँ दी गई हैं। अन्त में मण्डलोद्धार की विधि कही गई है। पाँच श्लोक प्रशस्ति रूप में दिये गये हैं उनमें ग्रन्थकार ने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है और भैरवपद्मावतीकल्प नामक यह ग्रन्थ समुद्र, पर्वत, आकाश, चंद्र, सूर्य आदि की चिरकाल तक भाँति विद्यमान रहे ऐसी प्रार्थना की गई है।
रक्त
पृथ्वी
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