Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/505
सूची का निरूपण किया गया है।
उपर्युक्त विवरण से यह निष्कर्ष निकलात है कि इसे प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का आकर ग्रन्थ कहा जा सकता है। यह ग्रन्थ इतने सुन्दर ढंग से प्रकाशित हुआ है। कि जिस दिन जो विधान सम्पन्न करना हो, उस दिन उतने पृठ ले जा सकते हैं- देख सकते हैं। इसमें प्रत्येक विभाग से सम्बन्धित आवश्यक एवं उपयोगी चित्र भी संलग्न ही दिये गये हैं। प्रतिष्ठाकारकों को इस ग्रन्थ का अवश्य अवलोकन करना चाहिए। प्रतिष्ठाकल्प
यह एक संकलित रचना है। इसमें मंत्रों एवं श्लोकों का प्रधान्य है। यह गुजराती लिपि में आलेखित है। इसमें संगृहीत सभी विधि-विधान सकलचंद्रगणि रचित नहीं है अपितु पृथक्-पृथक् ग्रन्थों में से उद्धृत किये गये हैं और ये वर्तमान में अतिप्रचलित हैं।
कुंभस्थापना आदि कुछ विधान प्रतिष्ठाकल्प भा. १ में भी वर्णित हैं किन्तु अत्यन्त उपयोगी एवं विधिकारकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए प्रतिष्ठाकल्प भा. २ में भी संग्रहीत कर दिये गये हैं। प्रस्तुत कृति में प्रतिष्ठा से सम्बन्धित निम्न विधि-विधान उल्लिखित हुये हैं - १. कुंभस्थापना विधि २. दीपकस्थापना विधि ३. जवारारोपण विधि ४. जलयात्रादि विधि ५. ग्रहदिक्पाल पूजन विधि ६.अष्टमंगलस्थापना विधि ७. दशदिक्पाल आहान विधि ८. जिनबिंब प्रवेश विधि ६. नित्यकार्य विधि १०. चैत्यप्रतिष्ठा विधि ११. प्रासादअभिषेक विधि १२. मंडप-पीठस्थापन विधि १३. श्री अष्टोत्तरशतस्नात्र विधि १४. श्री शान्तिस्नात्र विधि १५. देवीप्रतिष्ठा विधि १६. गुरुमूर्ति या स्तूप प्रतिष्ठा विधि १७. मंत्रपट्ट प्रतिष्ठा विधि १८. कूर्मप्रतिष्ठा विधि (शिलास्थापन विधि) १६. खातमुहूर्त्त विधि २०. जीर्णोद्धार विधि
प्रस्तुत कृति का परिशिष्ट भाग विस्तृत है। इसमें कुंभस्थापना, जलयात्रा, बिंबप्रेवश, पाटलाआलेखन, कूर्मप्रतिष्ठा, पट्टप्रतिष्ठा आदि अनुष्ठानों को सम्पन्न करते समय उपयोग आने वाली सामग्री सूची भी दी गई है। प्रतिष्ठाकल्पादि अत्युपयोगी विधियाँ (भा.२)
प्रस्तुत कृति' एक संकलित रचना के रूप में है। इसका संयोजन और
' यह कृति वि.सं. २०१३ में, श्री सोमचंदभाई हरगोविंददास छाणी तथा छबलीदास केशरीचंद, संघवी खंभात वालों ने प्रकाशित करवाई है। ' यह कृति वि.सं. २०१३ में प्रकाशित हुई है।
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