Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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निर्माण हेतु द्रव्य सामग्री, यन्त्र के बहिर्वलय का निर्माण, यन्त्र के मध्यवलय का निर्माण, यंत्र के लिए जापमन्त्र, दिग्बंधन, दिग्विभाग, कालविभाग, गर्भगृह आदि का निरूपण हुआ है। तीसरा अधिकार प्रणिधान प्रयोग से सम्बन्धित है इसमें निर्मित यन्त्र की ध्यान विधि का निरूपण हुआ है इसके साथ ही पिण्डस्थ - पदस्थ - रूपस्थ ध्यान विधि भी कही गई हैं। चौथा अधिकार तात्पर्य की चर्चा करता है जैसे कि ऋषिमण्डलयन्त्र का उद्देश्य क्या है? समस्त देव-देवीयों को आमन्त्रित करने का प्रयोजन क्या है ? यन्त्र रचना किस पत्र पर करनी चाहिए ? इत्यादि । पांचवे अधिकार में इस रचना के आम्नायानुसार तीन प्रकार के होम बताये गये हैं उसमें पहला प्रकार उत्कृष्ट माना गया है। छट्ठे अधिकार में 'ॐ ह्रीं अर्हं नम:' इस जाप मन्त्र का साररूप प्रभाव बताया गया है।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 527
सारांशतः यह रचना अत्यन्त विस्तृत नहीं है तथापि गूढ़ार्थ विषय को ली हुई हैं। प्रस्तुत कृति में यंत्र को जैनचक्र और धर्मचक्र की तरह स्थान प्राप्त है साथ ही इसमें यन्त्रोद्धार, मन्त्रोद्धार, यन्त्रसाधना विधि, यन्त्रसाधना के प्रयोजन, यन्त्र का आम्नाय इत्यादि का कुशलतापूर्वक विवेचन हुआ है।
कामचण्डालिनीकल्प
यह कृति भी भैरवपद्मावतीकल्प के प्रणेता आचार्य मल्लिषेण की रचना है । यह पाँच अधिकरों में विभक्त है। इसमें कामचण्डालिनी की साधना विधि निरूपित है। '
कल्याणमन्दिरस्तोत्र
परम्परागत दृष्टि से इस स्तोत्र के प्रणेता श्रीवादिदेवसूरि के शिष्य श्री सिद्धसेन दिवाकर माने जाते हैं। ये विक्रम की १२ वीं शती में हुए हैं। इतिहास कहता है कि इस स्तोत्र की रचना उज्जैन के समीप महाकालेश्वर मन्दिर में हुई थी, जो आज अवन्तिपार्श्वनाथ तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी कथावस्तु पठनीय है।
यह रचना संस्कृत के ४४ पद्यों में की गई है। इसमें प्रमुख रूप से पार्श्वनाथ प्रभु की स्तुति का वर्णन है, किन्तु मान्यता यह है कि इस स्तोत्र का प्रत्येक पद्य आधि-व्याधि, संकट - उपद्रव, दुःख पीडा आदि को दूर करने वाला है। प्रत्येक पद्य की अपनी भिन्न-भिन्न शक्तियाँ हैं, अपना भिन्न-भिन्न प्रभाव हैं, उस प्रभाव को प्रगट करने के लिए इन पद्यों की साधना करनी होती हैं। अतः इस कृ
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उद्धृत - जैन धर्म और तान्त्रिक साधना पृ. ३५६
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यह स्तोत्र नूतनपद्यानुवाद तथा श्री देवेन्द्रकीर्ति प्रणीत कल्याणमन्दिरस्तोत्र की पूजा सहित, 'भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत परिषद्' ने प्रकाशित किया है।
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