Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/525
इस स्तोत्र के अंत में यह भी प्रतिपादित है कि इस स्तोत्र (ऊँकार) का विधिपूर्वक जाप करने वाला अथवा पाठ करने वाला मनुष्य स्वर्ग या मोक्षपद को प्राप्त करता है। स्पष्टतः इस स्तोत्र का विधिवत् स्मरण करना अनेक प्रकार से फलदायक है। यह स्तोत्र ऊँकार का माहात्म्य प्रगट करने के साथ-साथ ऊँकार ध्यान-विधि को भी प्रस्तुत करता है। 'ही'कार विद्यास्तवनम्
यह स्तोत्र ‘पंचनमस्कृतिदीपक' नामक ग्रन्थ में संग्रहीत है। उसमें इस स्तोत्र के रचनाकार आचार्य समंतभद्र को बताया है। यह संस्कृत के १६ पद्यों में गुम्फित है। उनमें १५ पद्य उपजातिवृत्त के हैं और अन्तिम श्लोक बसंततिलका वृत्त में है।
यह रचना मुख्यतया हौंकार विद्याकल्प से सम्बन्धित है। इसमें ‘हाँकार की ध्यान विधि' सम्यक् रूप से कही गई है इसके साथ ही ह्रींकार का स्वरूप, भिन्न-भिन्न वर्गों की अपेक्षा हींकार का ध्यान, ह्रींकार की महिमा एवं उसके फल का निरूपण हैं।
ह्रींकार स्वरूप बताते हुए कहा गया है कि जिसके पार्श्व में 'स' वर्ण है ऐसा 'ह' और 'य' तथा 'ल' के मध्य में स्थित है ऐसा 'र' तथा जिसके बीच में 'ई' स्वर है, जिसकी कांति देदीप्यमान सूर्य के समान है जो अर्धचन्द्र (कला) बिन्दु
और स्पष्ट नाद से शोभित हो रहा है ऐसे शक्तिबीज का मैं भावपूर्वक स्मरण करता हूँ।
हीकार की ध्यान विधि के प्रसंग में चर्चा करते हुए निर्देश किया गया हैं कि, ह्रौंकार विधि का ज्ञाता शिष्य सर्वप्रथम सद्गुरु के समीप में समुचित शिक्षा प्राप्त करें, फिर देह व चित्त से पवित्र होकर इन्द्रियों को वशीभूत करके मन में अडिग धैर्य धारण करें फिर मौनपूर्वक आत्मबीज-हींकार का विधियुक्त उपांशु जप करें।
ह्रींकार ध्यान का फल बताते हुए कहा गया है कि श्वेतवर्णी ह्रींकार का ध्यान करने से अनेक प्रकार की विद्याएँ, कलाएँ तथा शांतिक एवं पौष्टिक कर्म तत्क्षण सिद्ध होते हैं। रक्तवर्णी हौंकार का ध्यान करने से समग्र विश्व वश में हो जाता है। पीतवर्णी ह्रींकार का ध्यान करने से लक्ष्मी, आनंद और लीलासहित क्रीडा करती हैं। श्यामवर्णी ह्रींकार का ध्यान करने से शत्रुसमूह का तत्क्षण नाश होता है।
हीकार की महिमा को प्रगट करते हुए कहा गया है कि जैसे सिंह की गर्जना सुनकर हाथी दूर से ही भाग जाते हैं वैसे ही ह्रींकार ध्यान के प्रभाव से चोर, शत्र, ग्रह, रोग, भूतादि के दोष तथा अग्नि और बंधन से उत्पन्न होने वाले भय दूर
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