Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/513
विधि के अन्तर्गत कहा गया हैं। ६. मंडपपीठ-पीठि स्थापनाविधि- प्रतिष्ठा के पूर्व जिन पीठ पर नूतन बिम्बों को बिराजमान किया जाता है, उस पीठ को स्थापित करने की विधि यहाँ कही गई है। ७. जिनबिम्बप्रवेश तथा प्रतिष्ठाविधि- यह विधि जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा से सम्बन्धित है। यहाँ प्रतिष्ठाविधि से तात्पर्य है - जिननूतन बिंबों की प्रतिष्ठा करनी उन जिन बिम्बों का महोत्सव पूर्वक नगर प्रवेश करवाने के बाद यथायोग्य गादी पर स्थिर/प्रतिष्ठित करते समय जो विधि-विधान किये जाते है उसे प्रतिष्ठाविधि समझना चाहिए, किन्तु अंजनशलाका के समय जिन बिम्बों की प्राणप्रतिष्ठा की जाती हैं वह प्रतिष्ठाविधि यहाँ नहीं जाननी चाहिए। ८. प्रासादाभिषेकविधि- इसमें प्रासाद (जिनालय) के अभिषेक की विधि कही गई है। ६. परिकरप्रतिष्ठाविधि- परिकर युक्त प्रतिमाचित्त की प्रसन्नता में विशेष रूप से वृद्धि करती है इसमें उस परिकर को अभिमन्त्रित एवं प्रतिष्ठित करने की विधि वर्णित है। १०. गुरुमूर्तिप्रतिष्ठाविधि- इसमें आचार्य- उपाध्याय-साधु आदि की मूर्ति को प्रतिष्ठित करने की विधि बतायी है। ११. स्थापनाचार्यप्रतिष्ठाविधि- श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में स्थापनाचार्य (आचार्य की प्रतिकृति रूप रचना) का अत्यधिक महत्त्व है। तपागच्छ आदि कुछ परम्पराएँ में शंख के स्थापनाचार्य निर्मित करते हैं खरतरगच्छ आदि कुछ में चन्दन के स्थापनाचार्य बनाते हैं। ये स्थापनाचार्य प्रभावपूर्ण होते हैं। इनके प्रभावों का वर्णन करने वाली कई सूक्तियाँ यहाँ दी गई हैं, उनका अर्थ भी दिया गया है। साथ ही स्थापनाचार्य को प्रतिष्ठित करने की विधि भी प्रतिपादित की गई है। १२. मंत्र-चित्रपटप्रतिष्ठाविधि- कोई भी मंत्रपट हो या चित्रपट को मंत्रित, पूजित या प्रतिष्ठत किये बिना ही पूजा में रखते हैं तो वे यथावत फलदायी नहीं होते हैं इसलिए इसमें मंत्रपटों-चित्रपटों को प्रतिष्ठित करने की विधि कही है। १३. नवकरवाली प्रतिष्ठाविधि- इसमें नवकारवाली को मन्त्रित एवं प्रतिष्ठित करने की विधि बतायी गयी है। १४. खातमुहर्त्तविधि १५. शिलास्थापनाविधि- जिनमन्दिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व नींव मजबूत करने के लिए खड्डा खोदना ‘खात' कहलाता है और शुभमुहूर्त में निर्दिष्ट स्थान पर पहला पत्थर रखना 'शिला-स्थापन' कहलाता है। यहाँ इन दोनों की विधियाँ दी गयी हैं। १६. खंडितप्रतिमा- विजर्सनविधि- जिस प्रकार अंजनशलाका नहीं की गई प्रतिमा पूजने से कोई लाभी नहीं मिलता है उसी प्रकार जिस प्रतिमा के प्रधान अवयव खंडित हो गये हो वह प्रतिमा भी अपूजनिय हो जाती है। खंडित-जीर्ण-भग्नादि प्रतिमाओं को जहाँ-तहाँ नहीं रखनी चाहिए, उन प्रतिमाओं का विसर्जन कर देना चाहिए किन्तु वह विर्सजन क्रिया भी विधिपूर्वक करनी चाहिए इसमें वही विधि निर्दिष्ट है। १७. परिकरस्थप्रतिमाप्रतिष्ठा विधि- इसमें परिकर सहित प्रतिमा की प्रतिष्ठाविधि कही गई है। १८. द्वारोद्घाटन विधि- इसमें प्रतिष्ठा के दूसरे दिन जिन-मन्दिर के मूल द्वार को उद्घाटित करने की विधि उल्लिखित है। १६.
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