Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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508 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
इस अध्याय में मंदिर निर्माण के योग्य शिला के लक्षण, प्रतिष्ठा करने योग्य मूर्ति के लक्षण, चौबीस तीर्थंकरों के चिह्न चौबीस तीर्थंकरों के वर्ण, प्रतिष्ठाविधि करवाने वाले इंद्र ( प्रतिष्ठाचार्य) के लक्षण, दीक्षा गुरु का लक्षण, प्रतिष्ठा में खर्च करने वाले दाता (यजमान) के लक्षण भी निरुपित हैं। द्वितीय अध्याय- इस अध्याय में जलयात्रादि विधियों का वर्णन किया गया है। इसमें १५२ श्लोक गुम्फित हैं उनमें प्रमुख रूप से ये विधि-विधान कहे गये हैं- १. तीर्थ जल लाने की विधि २. शांतिक मांडल का विधान ३. पांच रंग का चूर्ण स्थापन तथा पंचपरमेष्ठी की पूजाविधि ४. अन्य देवताओं की पूजा विधि ५. दर्भन्यास का विधान ६. आह्वान, स्थापन, सन्निधिकरण, आदि चार प्रकार की उपचार पूजा का विधान ७. जलमंडल विधि ८. शांतिक मांडल के अन्तर्गत अष्टदल कमलपत्र ( लघुशांतिकर्म) की पूजा विधि और इक्यासी कोष्ठक वाले (बृहदशांतिकर्म) की पूजा विधि ६. जिनयज्ञ की पूजा विधि के अन्तर्गत मंत्रस्नान, अमृत स्नान, दहनक्रिया, प्लावनविधि, अंगन्यास, दिग्बंधन आदि के विधि-विधान १०. सिद्धभक्ति विधान ११. यज्ञदीक्षा विधि १२. यज्ञ द्वारा मालाधारण विधि १३. कटिसूत्रादि विधि १४. मंडप प्रतिष्ठा विधि १५. वेदी प्रतिष्ठा विधि १६. प्रोक्षण विधि आदि ।
तृतीय अध्याय- इस अध्याय में २४१ श्लोक हैं। इसमें यागमंडल की पूजाविधि का उल्लेख हुआ है। उसमें सोलह विद्यादेवियों का पूजन, जिनमाताओं का पूजन, बत्तीस इंद्रो का पूजन, चौबीस यक्षों का पूजन और चक्रेश्वरी आदि चौबीस शासन देवियों का पूजन करते हैं। इसके साथ ही द्वारपाल एवं दिक्पालों को अनुकूल करने की विधि, जयादि देवताओं की पूजाविधि, उत्तरवेदी की पूजा विधि का भी उल्लेख किया है।
चतुर्थ अध्याय- इसमें २२६ श्लोक हैं। इस अध्याय में मुख्यतः जिनबिंब की प्रतिष्ठा का विधान कहा गया है। उसमें प्रतिष्ठा योग्य प्रतिमा का स्वरूप, सकलीकरणविधान, आठ बार धनुष मंत्र का जाप, अर्हत् प्रतिमा की प्रतिष्ठा विधि इस अधिकार में ही प्रथम गर्भावतार कल्याणक विधान के अन्तर्गत जिन माताओं की स्थापना, रत्नवृष्टि की स्थापना, स्वप्नदर्शन की स्थापना, गर्भशोधन तथा दिक्कुमारियों के द्वारा की गई सेवा की स्थापना आदि का वर्णन हुआ है। द्वितीय जन्मकल्याणक विधान के अन्तर्गत जन्मकल्याण की स्थापना, जन्म के दस अतिशयों की स्थापना, प्रभु का सुमेरूपर्वत पर अभिषेक वर्णन, इन्द्र के द्वारा स्तुतिपूर्वक किया गया तांडव नृत्य, मूलवेदी में प्रतिमा का निवेदन एवं जिनमातृस्नपन, प्रभु के लिए भोग-उपभोग की सामग्री का इंद्र द्वारा किया गया प्रबंध आदि का उल्लेख है। तृतीय दीक्षा कल्याणक विधान के सन्दर्भ में प्रभु को
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