Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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462 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
श्री नवपद पूजा-विधि ४. श्री पंचपरमेष्ठी पूजा विधि - श्री हर्षसूरिकृत ५. श्री विंशस्थानक पूजा विधि - श्री हर्षसूरिकृत ६. पांचज्ञान पूजा विधि ७. श्री पंचकल्याणक पूजा विधि - श्री बालचन्द्रउपाध्यायकृत ८. श्री ऋषिमण्डल पूजाविधि - श्री हर्षसूरिकृत ६. श्री सतरहभेदी पूजाविधि - साधुकीर्ति गणिकृत १०. श्री बारहव्रत पूजा-विधि - पण्डित कपूरचन्दजीकृत ११ श्री रत्नत्रय आराधना पूजा विधि- श्री कवीन्द्रसागर सूरिकृत १२. श्री पार्श्वनाथप्रभु पूजा विधि - श्री कवीन्द्रसागरसूरि कृत १३. श्री महावीरस्वामी पूजा विधि - मुनि चतुरसागरकृत १४. श्री शासनपति पूजा विधि - मुनि चतुरसागरकृत १५. श्री सिद्धाचलजी पूजाविधिश्री सुगुणचन्द्रोपाध्यायकृत १६. श्री सम्मेतशिखरगिरि पूजा विधिबालचन्द्रोपाध्यायकृत १७. प्रथम दादा जिनदत्तसूरि पूजा - श्री हरिसागरसूरिकृत १८. द्वितीय दादा जिनचन्द्रसूरि पूजा - श्री हरिसागरसूरिकृत १६. तृतीय दादा जिनकुशलसूरि पूजा - श्री हरिसागरसूरिकृत २०. चतुर्थ दादा जिनचन्द्रसूरि पूजाश्री हरिसागरसूरिकृत।
स्पष्टतः मूर्तिपूजक परम्परा में विभिन्न प्रकार की पूजाएँ प्रचलित हैं तथा महापूजन के नाम से पूजाविधि का प्रचलन उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है । बृहद विधानसंग्रह
यह भी एक संकलित संग्रह है।' इसमें दस प्रकार के पूजा विधानों का संकलन किया गया है। ये विधान प्रायः हिन्दी पद्य में है। साथ ही इसमें मन्त्र प्रयोग की बहुलता है। इसमें वर्णित पूजा विधानों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं
१. नवग्रहअरिष्टनिवारकविधान इस विधान में कुल १० पूजाएँ होती हैं। नौ पूजा नवग्रह की शांति के लिए एवं एक समुच्चय पूजा होती है। इस विधान का वर्णन अलग से किया गया है।
२. कर्मदहनविधान आठ कर्मों की १४८ कर्म प्रकृतियों के नाश के लिए इस विधान की रचना हुई है। इस विधान में ६ पूजाएँ होती हैं। इसमें कर्मदहन विधान की जाय विधि भी बतलाई गई है।
३. पंचकल्याणकविधान प्रत्येक तीर्थंकर के ५-५ कल्याणक होते हैं। इनकी अलग-अलग पूजा करना पंचकल्याणक पूजन विधान कहलाता है। यह विधान प्रायः वेदी प्रतिष्ठा, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, मन्दिर शुद्धि आदि अवसरों पर किया जाता है।
४. पंचपरमेष्ठीपूजाविधान - पूज्य व्यक्तियों में सर्वोत्तम पूज्य पंच परमेष्ठी होते
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यह कृति श्री सेठी बन्धु श्री वीर पुस्तक मन्दिर श्री महावीर जी (राज.) से प्रकाशित है।
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