Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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470/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
प्रस्तुत संग्रह के तीसरे विभाग में ये विधि-विधान निरुपित किये गये हैं १. पूजन विधि २. मण्डल सम्बन्धी विधानों की जानकारी- इस संग्रह में निम्न मण्डल विधान सचित्र दिये गये हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- २.१ सोलहकारण विधान- सयन्त्र २.२ श्री नवदेवतामंडल विधान- सयन्त्र २.३ चतुर्विशतिपूजा विधान- सयन्त्र २.४ श्री समवसरण विधान- सयन्त्र २.५ श्री वास्तु विधानसयन्त्र २.६ श्री पंचपरमेष्टी विधान- सयन्त्र ३. आवश्यक संस्कार मंत्र विधि ४. अंगन्यास-सकलीकरण की संक्षिप्त विधि ५. मण्डप शुद्ध करने की विधि ६. अभिषेक पाठ एवं शांतिधारा विधि ७. विनयपाठ एवं दैनिक पूजा विधि ८. यंत्र पूजा की विधि ६. सोलहकारण विधान यह रचना श्री टेकचंदजी की है १०. समुच्चय नवदेवता विधान- यह ब्र. सूरजमलजी द्वारा रचित है ११. वर्तमानचतुर्विशति विधान- यह श्री वृन्दावनलाल जी द्वारा लिखा गया है १२. समवसरण विधान- यह कुंवरलालजी की रचना है १३. पंचपरमेष्ठी विधानइसकी रचना श्री टेकचंदजी द्वारा की गई है १४. वास्तु विधान- यह पं. विमलकुमारजी सोरया द्वारा सम्पादित किया गया है। शांतिनाथपूजाविधानमण्डल
यह कृति ब्र. शान्तिदास कवि की है।' इसका हिन्दी अनुवाद ब्र. सूरजमल जैन ने किया है। यह रचना संस्कृत गद्य-पद्य में है और दिगम्बर परम्परा से सम्बन्धित है। इस पूजा विधान के सम्बन्ध में निर्देश है कि इस विधान को प्रतिमाह शुक्लपक्ष में सोलह दिनों तक करना चाहिए। इन दिनों में प्रतिदिन एक-एक हजार जाप करना चाहिए तथा पूर्णिमा के दिन सोलह हजार जाप्य, जातिपुष्प या लवंग से मंडल का पूजन करना चाहिए। वह मण्डल ८, १६, ३२, ६४ इस तरह १२० कोष्ठक का बनाना चाहिए। यह पूजन पूर्ण करने के बाद एक व्यक्ति झल्लरीयंत्र को जिनमंदिर के मुख्य द्वार पर बाँधे और एक व्यक्ति झल्लरीयंत्र तथा प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करें। उस समय मंदिर के द्वार पर बंधे हुए झल्लरी यंत्र को बजाया जाना चाहिए। इस यंत्र की आवाज जितनी दूरी तक जाती है वहाँ तक सभी प्रकार की बीमारियाँ समाप्त हो जाती हैं। ऐसा आचार्यों का कथन है। तदनन्तर सोलह हजार जाप्य की दशांग आहूतियाँ दी जाना चाहिए।
प्रस्तुत विधान के अन्तर्गत सामान्यतः पंचामृताभिषेकविधि, लघुशान्तिधारा विधि, बृहत्शान्तिधारा विधि, शान्तिस्तोत्र का पाठ और अरिहंत पूजन विधि भी होती है।
' यह कृति श्री शांतिवीर दिगम्बर जैन संस्थान, श्री शांतिवीर नगर (महावीर जी) ने वि.सं. २५२७ में, प्रकाशित की है। यह १६ वी आवृत्ति है।
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