Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/483
अर्हत्प्रतिष्ठा
यह रचना दिगम्बर मुनि पुष्पसेन के शिष्य अपायर्य्य की है। इसके अपरनाम जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय और प्रतिष्ठासार है। इसका रचनाकाल शक सं. १२४१ है। यह कृति जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा विधि से सम्बन्धित है। यह ग्रन्थ आशाधर, इन्द्रनन्दि, गंगभद्र, जिनसेन, पूज्यपाद, वसुनन्दी, वीराचार्य और हस्तिमल्ल विरचित प्रतिष्ठा पाठों के आधार से रचा गया है।' अर्हत्प्रतिष्ठासार
यह कृति कुमारसेन की है और संस्कृत में निबद्ध है। इस रचना में जिनबिम्ब प्रतिष्ठा विधि का संक्षिप्त विवेचन होना चाहिए, ऐसा कृति नाम से अवगत होता है। अर्हत्प्रतिष्ठासारसंग्रह
इसके रचनाकार दिगम्बरीय मुनि नेमिचन्द्र है। इस कृति के दो नाम ये भी हैं १. नेमिचन्द्र संहिता और २. प्रतिष्ठातिलक। आचार्यप्रतिष्ठाविधि
___ यह कृति प्राकृत में है और पाटण के ज्ञान भंडार में मौजूद है। हमें कृ ति के नाम से सूचित होता हैं कि इसमें आचार्य मूर्ति की स्थापना (प्रतिष्ठा) विधि का वर्णन है।' कल्याणकलिका (भा. १)
इस कृति के प्रणेता जैनशासन के प्राचीन ग्रन्थों का संशोधन करने वाले आगम-व्याकरण-न्याय आदि ग्रन्थों के प्रकांड विद्वान, इतिहास मर्मज्ञ, विधि-विधान ग्रन्थों के विशिष्ट ज्ञाता, ज्योतिष शास्त्र के समर्थ विद्वान् एवं प्राचीन शिल्प विज्ञान के गहन अभ्यासी श्री कल्याणविजयजी गणि है। उनकी यह कृति संस्कृत भाषा के ६२० पद्यों में रचित है। इस ग्रन्थ का रचना काल विक्रम की उन्नीसवीं शती है।
यह रचना शिल्प, विधि-विधान और मुहूर्त्तादि से सम्बन्धित है। निःसन्देह यह ग्रन्थ अर्वाचीन है किन्तु अति उपयोगी सामग्री से भरपूर है। अल्पअवधि में अच्छी प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन तीन खंडों में हुआ है।
'जिनरत्नकोश पृ. १६ २ जिनरत्नकोश पृ. १६ ' वही. पृ. २५ २ यह ग्रन्थ वि.सं. २०४३ में, श्री कल्याणविजयगणि शास्त्र संग्रह समिति, जालोर (राज.) से प्रकाशित हुआ है।
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