Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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क्षेत्रपाल की आरती उतारते हैं।
इस कृति के अन्त में वास्तुदेवता के नाम एवं उनके लिए देने योग्य बलि पदार्थों के नाम तथा बलि पदार्थ भरने योग्य पात्रों की संख्या सूची दी गई है। क्षेत्रपालपूजा - यह विश्वसेनभट्टारक की रचना है। इसमें क्षेत्रपाल देवता की पूजा विधि वर्णित है।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 481
क्षेत्रपालपूजाउद्यापन - इसके कर्त्ता धर्मचन्द्राचार्य है। इसमें क्षेत्रपालपूजा की उद्यापन विधि कही गई है।
क्षेत्रपालपूजाजयमाला - इसकी रचना विजयकीर्ति के शिष्य श्री शुभचन्द्र ने की है। यह रचना' क्षेत्रपाल की पूजा - विधि से ही सम्बन्धित है।
ज्ञानपीठ-पूजांजलि
जैन सिद्धांत के मर्मज्ञ विद्वानों द्वारा किया गया यह एक ऐसा संग्रह है' जिसमें पूजा विधान आदि कई आवश्यक कृत्यों का व्यवस्थित रूप से नियोजन तथा मूलपाठ का सुसम्पादन किया गया है। इस संग्रह की एक बड़ी विशेषता यह हैं कि इसमें संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश पूजा-विधान का पहली बार हिन्दी अनुवाद दिया गया है तथा प्रस्तावना में पूजा पद्धति पर ऐतिहासिक और सैद्धान्तिक दृष्टि से विचार किया गया है।
इसमें सामान्य प्रकार की पांच पूजाएँ, पर्व सम्बन्धी सात पूजाएँ, तीर्थंकर सम्बन्धी ग्यारह पूजाएँ और नैमित्तिक सम्बन्धी चार पूजाएँ कही गई हैं। इन पूजाओं के नाम 'जिनवर - अर्चना' नामक संग्रह कृति में आ चुके हैं। अतः पुनर्लेखन करना उचित नहीं है। इस संग्रह में दिगम्बर आम्नाय के पूजा-विधान उल्लिखित है। अंजनशलाका प्रतिष्ठाकल्पः ( भा. २)
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यह कल्प प्राचीन ग्रन्थों के आधार से संकलित किया गया है। इसका संकलन तपागच्छीय श्री कैलाशसागरसूरि के शिष्यप्रवर श्री कल्याणसागरसूरि ने किया है इसका संकलनकाल वी. सं. २५०४ है। इसकी भाषा गुजराती है। इस कृ ति की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें संकलित किये गये विधि-विधान की लेखन शैली इतनी सरल और सुस्पष्ट है कि इन्हें तत्काल पढ़कर भी कोई विधिकारक
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जिनरत्नकोश पृ.६८
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यह संग्रह 'भारतीय ज्ञानपीठ - नयी दिल्ली से प्रकाशित है।
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यह प्रतिष्ठाकल्प 'श्री सीमंधरस्वामिजिनमन्दिर कार्यालय, ओसियाजी नगर, नंदिराम - दक्षिण गुज. ' .' ने वि.सं. २०५२ में प्रकाशित किया है।
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