Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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474/मंत्र, तंत्र, शिया सम्बन्धी साहित्य
सिद्धचक्रयंत्रोद्धारपूजनविधि
इसका प्रारम्भ २४ पद्यों की विधिचतर्विशतिका' से किया गया है। मुद्रित पुस्तिका में प्रारम्भ के १३/ पद्य नहीं हैं, क्योंकि यह पुस्तक जिस हस्तलिखित पोथी से तैयार की गई है, उसमें पहला पन्ना नहीं था।
__इस पहली चौबीसी के पश्चात् 'सिद्धचक्रतपोविधानोद्यापन' नामक चौबीस पद्यों की एक दूसरी चतुर्विंशतिका है। इसके बाद 'सिद्धचक्राराधनफल' नाम की एक तीसरी चतुर्विंशतिका है। ये तीनों चतुर्विंशतिकाएँ संस्कृत में हैं। इन तीनों चतुर्विंशतिकाओं के उपरान्त इसमें सिद्धचक्र की पूजनविधि भी दी गई है। इसके अनन्तर नौ श्लोकों का संस्कृत में सिद्धचक्रस्तोत्र है। इसी प्रकार इसमें लब्धिपदगतिमहर्षिस्तोत्र, क्षीरादिस्नात्रविषयक संस्कृत श्लोक, जलपूजा आदि आठ प्रकार की पूजा के संस्कृत श्लोक, चौदह श्लोकों की संस्कृत में 'सिद्धचक्रयंत्रविधि' और पन्द्रह पद्यों का जैन महाराष्ट्री में विरचित 'सिद्धचक्कप्पभावथोत्त' है।
इसमें यथास्थान दिक्पाल, नवग्रह, सोलह विद्यादेवी एवं यक्ष-यक्षिणी के पूजन के बारे में भी उल्लेख है। सिद्धचक्रबृहत्पूजनविधि
प्रस्तुत कृति मूल रूप से संस्कृत गद्य-पद्य में रचित है।' इस कृति का गुजराती अनुवाद हो चुका है वह इसी कृति के साथ पीछे दिया गया है। जैन परम्परा के मूर्तिपूजक आम्नाय में इस विधान का विशिष्ट महत्त्व है। तीर्थंकर प्रतिमाओं की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा अदि के अवसर पर यह विधान अवश्यमेव किया जाता है। इसमें सिद्धचक्रपूजनविधि का सविस्तार वर्णन किया गया है। हम विस्तार से पूजाविधि का नामनिर्देश मात्र सूचित कर रहे हैं। यह विधान अनुक्रम से इस प्रकार सम्पन्न होता है
सर्वप्रथम पूजन उपयोगी सामग्री को वाग्यदान पूर्वक अभिमन्त्रित करते हैं। फिर गाजे बाजे के साथ प्रभु प्रतिमा को बिराजमान करते हैं तत्पश्चात् सिद्धचक्र की तीन चौबीसियों को मधुर स्वर में गाते हैं। ये तीनों चौबीसिया २४-२४ पद्यों में है। उसके बाद 'अर्हन्तो भगवन्त' की स्तुति बोलकर सिद्धचक्रपूजन का प्रारम्भ करते हैं उस समय भूमि शुद्धि एवं भूमि प्रमार्जन हेतु वायुकुमारादि देवों का
२ यह कृति नेमि-अमृत-खान्ति परंजन-ग्रन्थमाला अहमदाबाद से, वि.सं. २००८ में 'सिद्धचक्रमहामंत्र' के साथ प्रकाशित हुई है। ' यह पुस्तक वि.सं. २०३० में, जैन प्रकाशन मंदिर शाह जसवंतलाल गिरधरलाल ३०६/४ दोशीवाडानी पोल अहमदाबाद से प्रकाशित हुई है।
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