Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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396/योग-मुद्रा-ध्यान सम्बन्धी साहित्य
आसन और शक्ति संवर्धन - इसमें कहा गया है कि संस्कार शुद्धि के साथ संयम एवं शक्ति संवर्धन के लिए आसन का अभ्यास किया जाता है। स्थिरता एवं गतिशीलता शारीरिक के दो रूप हैं। स्थिरता गुप्ति है और सम्यक् गतिशीलता समिति है। ध्यान के लिए स्थिरता आसन उपयोगी है। पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन ये ध्यान के आसन हैं। स्थिति आसन से मांसपेशियों को विश्राम मिलता है। गति वाले आसनों में मांसपेशियों की पारस्परिक गति से शरीर को संतुलित बनाया जाता है। ये पेशियाँ जोड़ों को व्यवस्थित बनाती है। आसन और स्वास्थ्य - आसन शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति एवं आध्यात्मिक विकास के लिए उपयुक्त भूमिका का निर्माण करता है। आसन में मानसिक प्रसन्नता के साथ-साथ शरीर के अवयवों पर सीधा असर होता है। सन्धि-स्थल, पक्वाशय, यकृत, फेफड़े, हृदय, मस्तिष्क आदि सम्यक्तया अपना कार्य करने लगते हैं। आसन से माँसपेशियाँ सुदृढ़ एवं सुडौल बनती है, जिससे पेट एवं कमर का मोटापा दूर होता है। आसन करने से शरीर के सभी अंग एवं कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं, जिससे रोग प्रतिकार की क्षमता जागृत होती है।
स्नायु मण्डल को शक्ति सम्पन्न एवं सक्रिय करने के लिए आसन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्नायुओं में क्रियावाहिनी और ज्ञानवाहिनी दोनों प्रकार की नाडियाँ होती हैं। आसन से उन पर विशेष प्रकार का दबाव पड़ता है, जिससे उनका संकोच-विकोच होता रहता है। स्नायु-मंडल मस्तक से लेकर पाँव के अंगुष्ठ तक फैले हुए हैं। आसन से समस्त स्नायु प्रभावित होते हैं, अतः स्वास्थ्य साधना की दृष्टि से आसन की उपयोगिता स्वतः सिद्ध हो जाती है। आसन से और भी अनेक लाभ होते हैं।
यहाँ यह समझ लेना भी अनिवार्य प्रतीत होता है कि आसन का उद्देश्य क्या हों ? आसन का उद्देश्य है - शरीर के यंत्र को साधना के अनुरूप बनाना। शरीर का प्रत्येक अवयव सक्रिय एवं स्वस्थ बने, यह स्वास्थ्य और साधना दोनों दृष्टियों से अपेक्षित है। यह निर्विवाद है कि काया की क्षमता के अभाव में वाक्
और मन पर संयम से पूर्व काय-संयम आवश्यक है। उसके लिए आसन प्रक्रिया सम्यग् अनुष्ठान है। आसन श्रेणियाँ - प्रस्तुत पुस्तक में आसन के तीन प्रकार कहे गये हैं। १. शयन आसन- लेटकर किये जाने वाले आसन। २. निषीदन आसन- बैठकर किये जाने वाले आसन। ३. ऊर्ध्व आसन- खड़े होकर किये जाने वाले आसन। विधिवत् शरीर को स्थिर बनाकर रखना स्थान-आसन कहलाता है। यह तीनों प्रकार से हो सकता है। शयन-स्थान से आसन का प्रारम्भ करना शरीर विज्ञान की दृष्टि से उपयोगी माना गया है। बच्चा प्रारम्भ में लेटकर
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