Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/327
निशीथसत्र के प्रत्येक उद्देशक में पहले तत्तद् प्रायश्चित्त के योग्य कार्यों-दोषों का उल्लेख किया गया है अन्त में उन सब के लिए तत्सम्बद्ध प्रायश्चित्त विशेष का नामोल्लेख कर दिया गया है। निशीथसूत्र में उल्लखित प्रायश्चित योग्य दोषों एवं तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त विधान का विवरण इस प्रकार हैपहला उद्देशक - इस उद्देशक में निम्नोक्त क्रियाओं के लिए गुरुमास अथवा मास-गुरु (उपवास) प्रायश्चित्त का विधान किया गया है - हस्तकर्म करना, अंगादान (कष्ठादि की नली को अंगादान में प्रवष्टि) करवाना, अंगादान का मर्दन करना, तेल आदि से अंगादान का अभ्यंग करना, पद्मचूर्ण आदि से अंगादान का उबटन करना, अंगादान को पानी से धोना, अंगादान में नली को प्रविष्ट करना, अंगादान करना, अंगादान के ऊपर की त्वचा को दूर कर अन्दर का भाग खुला करना, अंगादान को सूंघना, सचित्त पुष्पादि सूंघना, सचित्त पदार्थ पर रखा हुआ सुगन्धित द्रव्य सूंघना, मार्ग में कीचड़ आदि से पैरों को बचाने के लिए दूसरों से पत्थर, आदि रखवाना, ऊँचे स्थान पर चढ़ने के लिए दूसरों से सीढ़ी आदि रखवाना, भरे हुए पानी को निकालने के लिए नाली आदि बनवाना, सुई आदि तीखी करवाना. कैंची को तेज करवाना, नखछेदक को ठीक करवाना, कर्ण शोधक को साफ करवाना, निष्प्रयोजन सुई की याचना करना, निष्प्रयोजन कैंची माँगना, अविधिपूर्वक सुई आदि मांगना, अपने लिए माँगकर लायी हुई सुई से पैर आदि का काँटा निकालना, सुई आदि को अविधिपूर्वक वापस सौंपना, अलाबु तुम्बे का पात्र, दारु-लकड़ी का पात्र और मृत्ति मिट्टी का पात्र दूसरों से साफ करवाना सुधरवाना, दण्ड, लाठी आदि दूसरों से सुधरवाना, पात्र पर शोभा के लिए कारी आदि लगाना, पात्र को अविधि पूर्वक बाँधना, पात्र को एक ही बंध (गाँठ) से बाँधना, पात्र को तीन से अधिक बंध से बाँधना, पात्र को अतिरिक्त बन्ध से बाँधकर डेढ़ महिने से अधिक रखना, वस्त्र पर (शोभा के लिए) एक कारी लगाना, वस्त्र पर तीन से अधिक कारियाँ लगाना, अविधि से वस्त्र सीना, वस्त्र के एक पल्ले के (शोभा निमित्त) एक गाँठ देना, वस्त्र के तीन पल्लों के तीन से अधिक गाँठ देना (जीर्ण वस्त्र को अधिक समय तक चलाने के लिए), वस्त्र को निष्कारण ममत्व भाव से गाँठ देकर बँधा रखना अन्य जाति के वस्त्र ग्रहण करना, अतिरिक्त वस्त्र डेढ महिने से अधिक रखना, अपने रहने के मकान का धूआँ दूसरे से साफ करवाना, निर्दोष आहार में सदोष आहार की थोड़ी सी मात्रा मिली हो उस आहार (पूतिकर्म) का उपभोग करना।। द्वितीय उद्देशक - इस द्वितीय उद्देशक में उन क्रियाओं (दोषों-अपराधों) का निर्देश किया गया है जिनके दोषों की शुद्धि के लिए लघुमास अथवा मासलघु (एकाशन)
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